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100 पंच परमेष्टि-वन्दना
(मंगलाचरण) अरिहन्त प्रभु तुझ चरणों में, ये जीवन मेरा अर्पित है । हे आतम-रिपु-विजय भगवन्, तुमको सर्वस्व समर्पित है ॥
- अरिहन्त. हे अष्ट-करम-मारक सिद्धा, हे चिदानन्द ! हे शिवधामी । हे अव्याबाध, अनादि सादि, हे नमो-नमो अन्तर्यामी ॥
अरिहन्त. छत्तीस गुणों से युक्त हुए, आचार्यदेव जग-हितकारी । शासन-पति के आज्ञापालक, हे नमो-नमो हे गणधारी ॥
अरिहन्त..... हे तप-रत द्वादश अंगध्यायी, उपदेशक उत्तम पदधारी । हे उपाध्याय ! भगवन्त नमो, हे सुखकारी ! हे सुविचारी ॥
अरिहन्त. ...... ममता-मारक, समताधारी, समिति, गुप्ति, संयम पाले । ऐसे साधु भगवन्त नमो, जो दोष बयालीस को टाले ॥
अरिहन्त. ...... ये पंच परमेष्ठी भव-तारक, इनकी महिमा का पार नहीं । ये 'नैन' निरन्तर जाप जपे, बिन जाप किये उद्धार नहीं ॥
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रचयिता : नैनमल विनयचन्द्र सुराणा
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