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पञ्चमोऽध्यायः
* प्रदेश-यानी वस्तु-पदार्थ के साथ प्रतिबद्ध वस्तु-पदार्थ का निविभाज्य एक भाग है। निविभाज्य भाग भी जिसका सर्वज्ञविभु केवलीभगवन्त से भी दो विभाग न हो सके, ऐसा अन्तिम सूक्ष्म अंश है।
* परमाणु-यानी मूल वस्तु-पदार्थ से छूटा पड़ा हुआ निविभाज्य भाग है ।
* प्रदेश और परमाणु में भिन्नता–सर्वज्ञविभु केवली भगवन्त की दृष्टि से भी जिसके दो विभाग-भाग न हो सके, ऐसा अन्तिम सूक्ष्म अंश प्रदेश भी कहा जाता है और परमाणु भी कहा जाता है।
इन दोनों में भिन्नता-जदाई इतनी ही है कि ये सूक्ष्म अंश जो वस्तू-पदार्थ स्कन्ध के साथ प्रतिबद्ध हों तो उनको प्रदेश कहते हैं, और छटा पड़ा हुआ हो तो उसको परमाणु कहते हैं। यह प्रदेश ही छूटा पड़ के परमाणु का नाम धारण करता है।
अजीव तत्त्व के धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, आकाशास्तिकाय और जीवास्तिकाय इन चार द्रव्यों के स्कन्ध, देश और प्रदेश इस तरह तीन विभाग हैं; किन्तु परमाणु रूप चतुर्थ-चौथा विभाग नहीं है। क्योंकि इन चार द्रव्यों का निज समस्त प्रदेशों के साथ शाश्वत सम्बन्ध है।
इन चार द्रव्यों में से एक भी प्रदेश किसी भी काल में पृथक्-छटा नहीं पड़ता। पुद्गल के स्कन्ध में से ही प्रदेश पृथग्-छूटा पड़ते हैं ।
पुद्गल के स्कन्ध में से पृथग्-छुटे पड़े हुए प्रदेश ही परमाणु का नाम धारण करते हैं। इस तरह परमाणु यानी पुद्गल स्कन्ध में से पृथग्-छूटा पड़ा हुआ प्रदेश ।
प्रदेश और परमाणु का कद भी समान ही होता है। क्योंकि दोनों वस्तु-पदार्थ के निविभाज्य अन्तिम सूक्ष्म अंश हैं ।
विशेष-निरूपण पद्धति के अनुसार पहले लक्षण कहने के बाद भेद-निरूपण कहना चाहिए, तथापि सूत्रकार ने नियम का उल्लंघन कर पहले भेदनिरूपण किया है। जिसका कारण यह है कि अजीव के लक्षण का ज्ञान जीव के लक्षण से ही हो सकता है। जैसे-अजीव। अर्थात् जीव नहीं वही अजीव है। उपयोग जीव का लक्षण है। जिसमें उपयोग न हो उसे 'अजीव तत्त्व' कहते हैं। उपयोग का अभाव ही अजीव तत्त्व का लक्षण है ।
अजीव है वह जीव का विरोधी भावात्मक तत्त्व है, किन्तु वह केवल अभावात्मक नहीं है। धर्मादि चार अजीव तत्त्वों को अस्तिकाय कहा। जिसका अभिप्राय यह है कि वे मात्र एक प्रदेश रूप अथवा एक अवयव रूप नहीं हैं, किन्तु समूह रूप हैं, तथा पुद्गल अवयव रूप एवं अवयव प्रचयसमूह रूप है।
__ अजीव तत्त्व के भेदों में काल की गणना नहीं की। जिसका कारण यह है कि इस विषय में मतभेद हैं। कोई काल को तत्त्व रूप मानते हैं, तो कोई नहीं भी मानते ।