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२०४६ तथा नेमि सं. ४१ की साल का मेरा चातुर्मास श्री जैनसंघ, धनला की साग्रह विनंति से श्री धनला गाँव में हुआ ।
इस चातुर्मास में इस ग्रन्थ की टीका और विवेचन का शुभारम्भ किया है । इस ग्रन्थ की लघु टीका तथा विवेचनादियुक्त यह प्रथम- पहला श्रध्याय है । इस कार्य हेतु मैंने प्रागमशास्त्र के अवलोकन के साथ-साथ इस ग्रन्थ पर उपलब्ध समस्त संस्कृत, गुजराती, हिन्दी साहित्य का भी अध्ययन किया है और इस अध्ययन के आधार पर संस्कृत में सुबोधिका लघु टीका तथा हिन्दी विवेचनामृत की रचना की
1 इस रचना - लेख में मेरी मतिमन्दता एवं अन्य कारणों से मेरे द्वारा मेरे जानते या प्रजानते श्रीजिनाज्ञा के विरुद्ध कुछ भी लिखा गया हो तो उसके लिए मन-वचनकाया से मैं 'मिच्छामि दुक्कड' देता हूँ ।
श्रीवीर सं. २५१७ विक्रम सं. २०४७
नेमि सं. ४२ कार्तिक सुद५ [ ज्ञान पंचमी ]
बुधवार दिनांक २४-११-६० 555
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लेखक - श्राचार्य विजय सुशीलसूरि
स्थल - श्रीमाणिभद्र भवन
- जैन उपाश्रय
मु. पो. धनला - ३०६०२५
वाया - मारवाड़ जंक्शन, जिला - पाली (राजस्थान )