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________________ ५:३६ ] मूलसूत्रम् पञ्चमोऽध्यायः * कालस्य विशेषस्वरूपम् [ ७७ सोऽनन्तसमयः ॥ ५-३६ ॥ * सुबोधिका टीका * स च कालोऽनन्तसमयः । तत्रैक एव वर्त्तमान समयः प्रतीतानागतयोस्त्वानन्त्यम् । अनंतशब्दः संख्यावाची, तथा समयशब्दः परिणमनं व्याचक्षते । अतएव कालद्रव्यानन्तरपरिणामी किन्तु वर्तमानसमयोऽथवा परिणमनमेकमेव । भूत-भविष्यदनन्ता:, भूतोऽनादि सान्तश्च भविष्यद् स्याद्यनन्तः । गुण-पर्यायवद् उक्त द्रव्यमिति । अत्र के च ते गुणा: ? ।। ५-३६ ।। * सूत्रार्थ - वह काल अनन्त समय रूप है । अर्थात् वह अनन्त समय वाला है ।। ५-३६ ।। - 5 विवेचनामृत काल अनन्त समय प्रमाण है । समय यानी काल का अन्तिम अविभाज्य सूक्ष्म अंश । काल के तीन भेद हैं । (१) वर्तमान, (२) भूत, और (३) भविष्यत् । उसमें वर्तमान काल एक समय का है । भूत और भविष्यत् ये दोनों काल अनन्त समय के हैं । यहाँ भूत और भविष्यत् काल को श्राश्रय करके काल को अनन्त समय प्रमारण कहा है । जैसे- पुद्गल के अविभाज्य [ जिसके दो विभाग नहीं हो सके ऐसे अन्तिम ] अंश प्रदेश को परमाणु कहा जाता है । वैसे काल के अविभाज्य [ जिसके दो विभाग न हो सकें, ऐसे अन्तिम सूक्ष्म ] अंश को समय कहा जाता है। नेत्र - प्राँख का एक पलकारा हो, उसमें असंख्यात समय हो जाते हैं । दृष्टांत तरीके कहा है कि जैसे कोई एक सशक्त युवक अपने सम्पूर्ण बल का उपयोग करके भाले की तीव्र अरणीद्वारा कमल के सौ पत्रों को एक साथ में भेदे । उसमें प्रत्येक पत्र के भेद में असंख्याता - प्रसंख्याता समय हो जाते हैं । वैसे दूसरे दृष्टान्त से भी कहते हैं कि, कोई सशक्त युवक जीर्णशीर्ण वस्त्र को एक साथ फाड़ देवे, उसमें वस्त्र के प्रत्येक तांतरणा को तूटते हुए असंख्याता समय हो जाते हैं । उक्त दोनों दृष्टान्तों से समय कितना सूक्ष्म है, उसका ख्याल आ जाता है । अब समय से लगाकर के एक पुद्गल परावर्त पर्यन्त तक भेद नीचे प्रमाणे हैं
SR No.022534
Book TitleTattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tika Tatha Hindi Vivechanamrut Part 05 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaysushilsuri
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year1998
Total Pages264
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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