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श्रीतत्त्वार्थाधिगमसूत्रे
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दो नदियाँ हैं। उनमें हरिकान्ता नदी महापद्मद्रह में से निकल कर उत्तरदिशा की तरफ बहती है, फिर आगे जाती वह क्षेत्र के वृत्त वैताढय से चार गाउ दूर रहकर के पश्चिम दिशा की तरफ मुड़कर लवण समुद्र में जा मिलती है। हरिसलिला नदी तिगिच्छ द्रह में से दक्षिण दिशा की तरफ निकलती है। आगे जाती वह नदी वृत्त वैताढ्य से चार गाउ दूर रहकर पूर्व दिशा की तरफ मुड़कर लवणसमुद्र में मिलती है।
निषध पर्वत :
हरिवर्ष क्षेत्र के पश्चात उत्तरदिशा की तरफ निषधपर्वत पाता है। उसके मध्य भाग में तिगिच्छ नामक द्रह है। उसमें आये हुए कमल की करिणका पर धीदेवी का भवन है। इस पर्वत के ऊपर पूर्व-पश्चिम श्रेणी में श्रेरिणबद्ध नौ कूट हैं। उनमें प्रथम कूट के ऊपर स्थित जिनप्रासाद में १०८ जिनमुत्तियाँ-प्रतिमाएँ हैं। शेष कूटों पर उनके स्वामी देवों और देवियों के प्रासाद हैं।
महाविदेह क्षेत्र :
निषध पर्वत के पश्चात उत्तरदिशा में महाविदेहक्षेत्र है। उसके पूर्वमहाविदेह, पश्चिम महाविदेह, देवकुरु तथा उत्तरकुरु इस तरह चार विभाग हैं । मेरुपर्वत से पूर्व दिशा में पूर्व महाविदेह क्षेत्र है, पश्चिम दिशा में पश्चिम महाविदेहक्षेत्र है, दक्षिण दिशा में देवकुरुक्षेत्र है, तथा उत्तरदिशा में उत्तरकुरुक्षेत्र है। शीता नदी से पूर्वमहाविदेहक्षेत्र के तथा शीतोदानदी से पश्चिममहाविदेहक्षेत्र के दो विभाग पड़ते हैं। इन दोनों नदियों के दोनों तरफ आठ-आठ विजय हैं। उनके कुल बत्तीस विजय हैं। एक-एक विजय के बीच में क्रमश: एक पर्वत और एक नदी पाती है। जैसे-पहले विजय, पश्चात् पर्वत, पीछे विजय, बाद में नदी। पश्चाद विजय, पीछे पर्वत, पश्चाद् बिजय, बाद में नदी। इनमें पाठ विजय के सात अन्तराल होते हैं। अर्थात् --आठ विजय के बीच में चार पर्वत तथा तीन नदियाँ पाती हैं। प्रत्येक विजय में षट यानी छह खण्ड, गुफाएँ, नदियाँ, बिल, पर्वत, तीर्थ, तथा द्रह इत्यादि आते हैं। उनका वर्णन भरतक्षेत्र के अनुसार जानना ।
देवकुरु क्षेत्र में निषध पर्वत से उत्तर दिशा में शीतोदा नदी के पश्चिम और पूर्व के किनारे पर क्रमश: चित्र तथा विचित्र नामके दो कूट हैं।
उत्तरकुरुक्षेत्र में नीलवन्त पर्वत से दक्षिण दिशा में शीता नदी के पूर्व और पश्चिम किनारे पर दो यमक पर्वत हैं।
देवकुरुक्षेत्र में चित्रकूट से उत्तर दिशा में शीतोदा नदी के अन्दर एक सदृश अन्तर वाले अनुक्रम से पाँच द्रह हैं। इन सभी द्रहों की पूर्व और पश्चिम दिशा मे काञ्चन नाम के दस-दस पर्वत हैं । कुल सौ (१००) पर्वत हैं। इसी तरह विचित्रकूट की उत्तर दिशा में पाँच द्रहों में से प्रत्येक द्रह के दस-दस पर्वत हैं। इस तरह उत्तरकुरुक्षेत्र में यमक पर्वत की दक्षिण दिशा में शीता नदी में पाँच द्रह और प्रत्येक द्रह की पूर्व तथा पश्चिम दिशा में दस-दस काञ्चन पर्वत हैं। इस प्रकार कुल चार सौ (४००) काञ्चन पर्वत हैं।