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( २३ ) २०४६ तथा नेमि सं. ४१ की साल का मेरा चातुर्मास श्री जैनसंघ, धनला की साग्रह विनंति से श्री धनला गाँव में हुआ।
इस चातुर्मास में इस ग्रन्थ की टीका और विवेचन का शुभारम्भ किया है । इस ग्रन्थ की लघु टीका तथा विवेचनादियुक्त यह प्रथम-पहला अध्याय है। इस कार्य हेतु मैंने आगमशास्त्र के अवलोकन के साथ-साथ इस ग्रन्थ पर उपलब्ध समस्त संस्कृत, गुजराती, हिन्दी साहित्य का भी अध्ययन किया है और इस अध्ययन के आधार पर संस्कृत में सुबोधिका लघु टीका तथा हिन्दी विवेचनामृत की रचना की है। इस रचना-लेख में मेरी मतिमन्दता एवं अन्य कारणों से मेरे द्वारा मेरे जानते या अजानते श्रीजिनाज्ञा के विरुद्ध कुछ भी लिखा गया हो तो उसके लिए मन-वचनकाया से मैं 'मिच्छा मि दुक्कडं' देता हूँ।
श्रीवीर सं. २५१७ विक्रम सं २०४७
नेमि सं. ४२ कार्तिक सुद ५ [ज्ञान पंचमी]
बुधवार दिनांक २४-११-६०
लेखकप्राचार्य विजय
सुशीलसूरि स्थल-श्रीमारिणभद्र भवन
-जैन उपाश्रय मु. पो. धनला-३०६ ०२५
वाया-मारवाड़ जंक्शन, जिला-पाली (राजस्थान)