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श्रीतत्त्वार्थाधिगमसूत्रे
[ हिन्दी पद्यानुवाद
सातवाँ वेयक देवायु, उनतीस सागरोपम का।...
आठवाँ अवेयक देवायु, तीस सागरोपम का। नौवाँ ग्रैवेयक देवायु, इगतीस सागरोपम । तत्त्वार्थ के अध्याय चौथे में, कहा उत्कृष्टायु इम ।। २८ ।।. अनुत्तर विजयादि देवायु, बत्तीस सागरोपम है । सर्वार्थसिद्ध देवायु, तैंतीस सागरोपम है। उत्कृष्टायु पूर्ण करके, जघन्य का वर्णन करें। सूत्र के सारांश का, कर वरण मुक्ति को वरें ।। २६ ।।
* वैमानिक देवों का जघन्यायुष्य * 卐 मूलसूत्रम्
अपरा पल्योपममधिकं च ॥ ४-३६ ॥ सागरोपमे ॥ ४-४० ॥ अधिके च ॥ ४-४१॥
परतः परतः पूर्वा पूर्वाऽनन्तरा ॥ ४-४२ ॥ * हिन्दी पद्यानुवाद
कल्पोपपन्न देवों के, क्रमशः जघन्यायु जानिये । सौधर्म कल्पे देवायु, एक पल्योपम मानिये ।। ईशान कल्पे देवायु, अल्पाधिक एक पल्योपम । सनत्कुमारकल्पे देवायु, है दोय सागरोपम ।। ३० ।। माहेन्द्रकल्पे देवायु, अल्पाधिक दो सागरोपम है । ब्रह्मलोककल्पे देवायु, सप्त सागरोपम है । लान्तककल्पे देवायु, दस सागरोपम जानना । महाशुक्र कल्पे देवायु, चौदह सागरोपम मानना ।। ३१ ।। सहस्रारकल्पे देवायु, सत्तरह सागरोपम है। आनत कल्पे देवायु भी, अठारह सागरोपम है ।। प्राणत कल्पे देवायु, उन्नीस सागरोपम जानिये । पारण कल्पे देवायु भी, बीस सागरोपम मानिये ।। ३२ ।।