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________________ ८] मूलसूत्रम् * हिन्दी पद्यानुवाद 5 मूलसूत्रम् पपातिक - मनुष्येभ्यः शेषास्तिर्यग्योनयः ।। ४-२८ ॥ श्री तत्त्वार्थाधिगमसूत्रे * तियंच संज्ञा वाले जीव श्रीपपातिक जन्म वाले, देव नारक जीव हैं । गर्भजन्मज मनुष्य ये, तीन रहित तिर्यंच हैं | देव, नर और नारकी के, जीव पञ्चेन्द्रिय कहे । एकादि इन्द्रिय पाँच तक के, जीव सब तिर्यंच कहे ।। २० ।। * भवनपति देव का उत्कृष्ट श्रायुष्य * हिन्दी पद्यानुवाद स्थितिः ।। ४- २६ ॥ भवनेषु दक्षिणार्धाधिपतीनां पत्योपममध्यर्धम् ।। ४-३० ।। शेषाणां पादोने ॥। ४-३१ ॥ सुरेन्द्रयोः सागरोपममधिकं च ।। ४-३२ ।। 5 मूलसूत्रम् [ हिन्दी पद्यानुवाद स्थिति शब्द से ही जीव के दो भेद श्रायु जानिये । उत्कृष्ट और जघन्य से, ये भेद सूत्र से मानिये || भवनपति के देव दक्षिण दिशा में जो नित्य रहे । उनका सार्द्ध पल्योपमायु, उत्कृष्ट इम श्रुत कहे ।। २१ ।। शेष उत्तर जो दिशा के, देव बसते शेष का । पाउणाद्विपयोपमायु, जान उत्कृष्ट ये श्रुत का || दक्षिण दिशि सुरेन्द्र का, एक सागरोपमायु है । उत्तर दिशि सुरेन्द्र का भी, अधिक सागरोपमायु है ।। २२ ।। * वैमानिक देवों का उत्कृष्टायुष्य सौधर्मादिषु यथाक्रमम् ॥ ४-३३ ।। सागरोपमे ।। ४-३४ ॥
SR No.022533
Book TitleTattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tika Tatha Hindi Vivechanamrut Part 03 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaysushilsuri
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year1995
Total Pages264
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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