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________________ हिन्दी पद्यानुवाद ] चतुर्थोऽध्यायः [ ८५ * ज्योतिष्क देवों के भेद * 卐 मूलसूत्रम् ज्योतिष्काः सूर्याश्चन्द्रमसो ग्रह-नक्षत्र-प्रकीर्ण-तारकाश्च ।। ४-१३ ॥ मेरुप्रदक्षिणा नित्यगतयो नृलोके ॥ ४-१४ ॥ तत्कृतः कालविभागः ॥ ४-१५ ॥ बहिरवस्थिताः ॥ ४-१६ ॥ * हिन्दी पद्यानुवाद है भेद ज्योतिष्क देव पंच, सूत्र के अनुसार ही । सूर्य, चन्द्र, ग्रह, अनुक्रम, नक्षत्र तारा है सही ।। मनुष्यलोके नित्य गति से, मेरु फिरते नित्य फिरें। दिन-रात पक्ष और मासे, काल विभाग वे करें ॥ ६ ॥ लोक बाहिर ज्योतिष्क देव, स्थिर रहते सर्वदा । समय प्रावली पक्ष बढ़ते, काल गणना नहीं कदा ।। भवनपति तथा व्यन्तर, देव ज्योतिषी वर्णव्या । भेद और प्रभेद सहित, सूत्रार्थमहीं पाठव्या ।। १० ।। * वैमानिक देवों के स्थान और प्रकार * 卐 मूलसूत्रम् वैमानिकाः ॥ ४-१७ ॥ कल्पोपपन्नाः कल्पातीताश्च ॥ १८ ॥ उपर्युपरि ॥ ४-१६ ॥ सौधर्मेशान-सनत्कुमार-माहेन्द्र-ब्रह्मलोक - लान्तक-महाशुक्र-सहस्रारेष्वानतप्राणतयोरारणाच्युतयोर्नवसु वेयकेषु विजय-वैजयन्त-जयन्ता-ऽपराजितेषु सर्वार्थसिद्ध च ॥ ४-२०॥
SR No.022533
Book TitleTattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tika Tatha Hindi Vivechanamrut Part 03 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaysushilsuri
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year1995
Total Pages264
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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