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४।४९-५० ]
चतुर्थोऽध्यायः
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卐 विवेचनामृत ॥ ज्योतिष्कनिकाय के देवों की उत्कृष्ट स्थिति का प्रमाण एक पल्योपम से कुछ अधिक है। उसका प्रमाण इस प्रकार है-चन्द्रमा का एक लाख वर्ष अधिक और सुर्य का एक हजार वर्ष अधिक है। ज्योतिष्क देवियों की उत्कृष्ट स्थिति का प्रमाण आधा पल्योपम और पचास हजार वर्ष है। ग्रहादिकों की उत्कृष्ट स्थिति का प्रमाण आगे के सूत्र में बता रहे हैं । (४-४८)
* ग्रहाणां उत्कृष्ट स्थितिः * ॐ मूलसूत्रम्
ग्रहारणामेकम् ॥ ४-४६ ॥
* सुबोधिका टीका * ग्रहाणां एकम् पल्योपमं स्थितिः भवतीति ।। ४-४६ ।। * सूत्रार्थ-ग्रहों की उत्कृष्ट स्थिति एक पल्योपम की है ।। ४-४६ ।।
ॐ विवेचनामृत ग्रहों की उत्कृष्ट स्थिति का प्रमाण एक पल्योपम का है। नक्षत्रों की उत्कृष्ट स्थिति का प्रमाण आगे के सूत्र में बता रहे हैं ।। ४-४६ ॥
* नक्षत्राणां उत्कृष्टस्थितिः *
卐 मूलसूत्रम्
नक्षत्राणामर्धम् ॥ ४-५० ॥
* सुबोधिका टीका * अश्विनी-भरणी-कृत्तिकादिसप्तविंशतिनक्षत्राणां देवानां पल्योपमाधं परा स्थितिः भवति ।। ४-५० ।।
* सूत्रार्थ-नक्षत्रों की उत्कृष्ट स्थिति आधा पल्योपम है ।। ४-५० ।।
क विवेचनामृत ॥ अश्विनी-भरणी-इत्यादि नक्षत्र जाति के ज्योतिष्क देवों की उत्कृष्ट स्थिति आधा पल्योपम प्रमाण है। ताराओं की उत्कृष्ट स्थिति का वर्णन आगे के सूत्र में बता रहे हैं । ४-५० ।।