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________________ २८ ] श्रीतत्त्वार्थाधिगमसूत्रे [ ४।१४ इन ज्योतिष्क देवों के विमान उद्योतशील हैं। उन विमानों में जो रहे हुए हैं, उनको ज्योतिष्क या ज्योतिष देव भी कहते हैं। ज्योतिष्क और ज्योतिष शब्द का अर्थ एक ही है ज्योतिष्क देवों के मुकूटों में जो-जो चिह्न रहा करते हैं, वे मस्तक के मुकूटों से समलंकृत तथा प्रभामण्डल के समान एवं उज्ज्वल वर्ण के होते हैं। तथा वे यथायोग्य सूर्यमण्डल, चन्द्रमण्डल और तारामण्डल के रूप में हैं। ___ ज्योतिष्कदेव इन चिह्नों से युक्त प्रकाशमान हैं। उनके मस्तक पर जो मुकुट हैं उनमें उज्ज्वल देदीप्यमान सूर्यमंडल के सदृश सूर्य के तथा चन्द्रादि, एवं ताराओं के मंडल रूप अपने-अपने चिह्न यथाक्रम से चिह्नित हैं। इनका अस्तित्व समस्त द्वीपों और समुद्रों में है। किस-किस द्वीप में और किस-किस समुद्र में कितने-कितने प्रमाण में कौन-कौन से ज्योतिष्क विमान हैं ? यह प्रागमशास्त्र के अनुसार समझना चाहिये। ये ज्योतिष्क देव सर्वत्र समान गति वाले और भ्रमण करने वाले हैं, या उनमें किसी प्रकार का अन्तर है ? इसका वर्णन अब आगे के सूत्र में करते हैं ।। (४-१३) * ज्योतिष्कविमानानां परिभ्रमणक्षेत्रम 卐 मूलसूत्रम् मेरुप्रदक्षिणा नित्यगतयो नृलोके ॥ ४-१४ ॥ * सुबोधिका टीका * मनुष्यलोकस्य प्रमाणं पूर्वमेवोक्तम् । मानुषोत्तरपर्वतपर्यन्तः मनुष्यलोकः । अर्थात्-जम्बूद्वीप-धातकीखण्डश्च पुष्करद्वीपस्याधुश्च तस्य मध्यवर्ती लवणसमुद्र-कालोदसमुद्रपर्यन्तक्षेत्रं मनुष्यलोकः। मानुषोत्तरपर्यन्तो मनुष्यलोक इत्युक्तम् । तस्मिन् ज्योतिष्काः मेरुप्रदक्षिणा नित्यगतयो भवन्ति । ___ मेरोः प्रदक्षिणा नित्या गतिरेषामिति । एकादशसु एकविशेषु योजनशतेषु मेरोश्चतुर्दिशं प्रदक्षिणं चरन्ति । तत्र द्वौ सूयौं जम्बूद्वीपे भवतः, लवणसमुद्रे चत्त्वारः सूर्याः भवन्ति, धातकीखण्डे द्वादशसूर्याः वर्तन्ते, कालोदधिसमुद्रे द्वाचत्वारिंशत् सूर्याः सन्ति, पुष्करार्धद्वीपे च द्विसप्ततिः सूर्याः भवन्ति । इत्येवं मनुष्यलोके द्वात्रिंशत्सूर्यशतं भवति । चन्द्रस्यापि एषैव नियमः । अष्टाविंशतिर्नक्षत्राणि सन्ति । अष्टाशीतिर्ग्रहाः भवन्ति । तथा षट्षष्ठिः सहस्राणि नवशतानि पञ्चसप्ततीनि तारा कोटाकोटीनामेकैकस्य चन्द्रमसः परिग्रहः । सूर्याश्चन्द्रमसो ग्रहाः नक्षत्राणि च तिर्यग् लोके सन्ति, शेषास्तु ऊर्ध्वलोके ज्योतिष्काः भवन्ति ।
SR No.022533
Book TitleTattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tika Tatha Hindi Vivechanamrut Part 03 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaysushilsuri
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year1995
Total Pages264
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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