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२४ ] श्रीतत्त्वार्थाधिगमसूत्रे
[ ४१२ * तीसरा भेद महोरग का है। उसके भी दस भेद हैं। यथा-[१] भुजग, [२] भोगशाली, [३] महाकाय, [४] अतिकाय, [५] स्कन्धशाली, [६] मनोरम, [७] महावेग, [८] महेष्वक्ष, [६] मेरुकान्त और [१०] भास्वान् ।
* चौथा भेद गन्धर्व का है। उसके बारह भेद हैं। यथा-[१] हाहा, [२] हूहू,
बरु, [४] नारद, [५] ऋषिवादिक, [६] भूतवादिक, [७] कादम्ब, [८] महाकादम्ब, [९] रैवत, [१०] विश्वावसु, [११] गीतरति, तथा [१२] गीतयशा।
* पाँचवाँ भेद यक्ष का है। उसके भी तेरह भेद हैं। यथा- [१] पूर्णभद्र, [२] माणिभद्र, [३] श्वेतभद्र, [४] हरिभद्र, [५] सुमनोभद्र, [६] व्यतिपातिक भद्र, [७] सुभद्र, [८] सर्वतोभद्र, [६] मनुष्ययक्ष, [१०] वनाधिपति, [११] वनाहार, [१२] रूपयक्ष और [१३] यक्षोत्तम।
* छठा भेद राक्षस का है। उसके भी सात भेद हैं। यथा-[१] भीम, [२] महाभीम, [३] विघ्न, [४] विनायक, [५] जलराक्षस, [६] राक्षसराक्षस, तथा [७] ब्रह्मराक्षस ।
* सातवाँ भेद भूत का है। उसके भी नौ भेद हैं। यथा-[१] सुरूप, [२] प्रतिरूप, [३] अतिरूप, [४] भूतोत्तम, [५] स्कन्दिक, [६] महास्कन्दिक, [७] महावेग, [८] प्रतिच्छन्न, और [९] अाकाशग।
* आठवाँ भेद पिशाच का है। उसके भी पन्द्रह भेद हैं। तथाहि-[१] कुष्माण्ड, [२] पटक, [३] जोष, [४] पाह्नक, [५] काल, [६] महाकाल, [७] चौक्ष, [८] अचौक्ष, [६] तालपिशाच, [१०] मुखरपिशाच, [११] अधस्तारक, [१२] देह, [१३] महाविदेह, [१४] तूष्णीक, तथा [१५] वनपिशाच ।
(१) उक्त आठ प्रकार के व्यन्तरों में से पहले प्रकार के किन्नर जाति के व्यन्तरदेव प्रियङ्गुमणि के समान श्याम वर्ण, सौम्यस्वभाव और प्राह्लादकर होते हैं। इनके रूप की शोभा मुख भाग में अधिक होती है और शिरोभाग मुकुट के द्वारा सुशोभित होता है। इनका चिह्न अशोकवृक्ष की ध्वजा है, तथा वर्ण अवदात, शुद्ध स्वच्छ एवं उज्ज्वल है।
(२) उक्त आठ प्रकार के व्यन्तरों में से दूसरे प्रकार के किम्पुरुष जाति के व्यन्तरदेव की शोभा उरु, जना तथा बाहुप्रों में अधिक होती है। इनका मुख का भाग अधिक भास्वर प्रकाशशील होता है, और ये अनेक प्रकार के अलंकारों से भूषित रहा करते हैं तथा चित्र-विचित्र प्रकार की मालाओं से भी सुसज्जित एवं नाना प्रकार के अनुलेप इत्र इत्यादिक से अनुलिप्त रहते हैं । इनका चिह्न चम्पक वृक्ष की ध्वजा है।
(३) उक्त आठ प्रकार के व्यन्तरों में से तीसरे प्रकार के महोरग जाति के व्यन्तरदेव श्यामवर्ण वाले होते हुए भी अवदात शुद्ध स्वच्छ और उज्ज्वल होते हैं। इनका स्वरूप देखने में सौम्य है। शरीर महान् तथा स्कन्ध और ग्रीवा का भाग विशाल एवं स्थूल हुमा करता है। ये भिन्न-भिन्न प्रकार के विलेपनों से युक्त और चित्र-विचित्र आभूषणों से विभूषित रहा करते हैं। इनका चिह्न नागवृक्ष को ध्वजा है।