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१८ ] प्रथमोऽध्यायः
[ २७ ७) भाव-अवस्था विशेष । विवक्षित तत्त्व प्रौपशमिक आदि पाँच भावों में से कौन से भाव में है ? उसकी विचारणा इस भावप्ररूपणा द्वार से होती है।
(८) अल्पबहुत्व-यानी न्यूनाधिकता। सम्यग्दर्शन आदि तत्त्वों के स्वामी का आश्रयण करके न्यूनाधिक का विचार इस अल्पबहुत्वप्ररूपणा द्वार से होता है।
अब इस विषय में सम्यग्दर्शन की विचारणा उपर्युक्त द्वारों से इस प्रकार है(१) सत्
* प्रश्न-सम्यग्दर्शन गुण है या नहीं ?
उत्तर–'सम्यग्दर्शन' गुण है । * प्रश्न–सम्यग्दर्शन गुण कहाँ-कहाँ पर है ?
उत्तर–सम्यग्दर्शन गुण सत्ता रूप से सभी जीवों में विद्यमान है, किन्तु उसका आविर्भाव सिर्फ भव्य जीवों में होता है, अभव्य जीवों में नहीं। यह गुण चेतन-प्रात्मा का ही है। इसलिए चेतन-पात्मा में ही रहेगा, अचेतन-जड़ में नहीं । जीवों के विषय में भी इसकी भजना प्रतिपादित की गई है। किसी में होता है और किसी में नहीं होता। किस-किस में होता है, यह जानने के लिए गति, इन्द्रिय, काय, योग, कषाय, वेद, लेश्या, सम्यक्त्व, ज्ञान, दर्शन, चारित्र, आहार और उपयोग, इन तेरह अनुयोग-द्वारों में आगम के अनुसार यथासम्भव इस सत्प्ररूपणा द्वारा समझ लेना चाहिए। (२) संख्या
* प्रश्न-सम्यग्दर्शन कितने हैं, संख्यात हैं, असंख्यात हैं या अनन्त हैं ?
उत्तर-सम्यग्दर्शन असंख्य हैं, किन्तु सम्यग्दृष्टि अनन्त हैं। अर्थात्-सम्यग्दर्शन जिसमें हो ऐसे जीव असंख्य हैं तथा सिद्ध जीवों की अपेक्षा ऐसे जीव अनन्त हैं।
(३) क्षेत्र
* प्रश्न-सम्यग्दर्शन कितने क्षेत्र में रहता है ?
उत्तर–सम्यग्दर्शन लोक के असंख्यातवें भाग में रहता है। अर्थात्-असंख्य प्रदेशरूप तीन सौ तेंतालीस (३४३) राजप्रमाण लोक में असंख्यात का भाग देने से जितने प्रदेश प्राप्त हो जाते हैं, उतने ही लोक के प्रदेशों में सम्यग्दर्शन पाया जा सकता है। चाहे सम्यग्दर्शन वाले एक जीव को लेकर या सर्व जीवों को लेकर विचार किया जाय तो भी सामान्य रूप से सम्यग्दर्शन का क्षेत्र लोक का असंख्यातवाँ भाग ही जानना । इसमें इतना अन्तर अवश्य ही होगा कि एक सम्यग्दर्शनी-सम्यक्त्वी जीव के क्षेत्र की अपेक्षा अनन्त जीवों का क्षेत्र, परिमाण में अधिक होगा। कारण कि लोक का असंख्यातवाँ भाग भी तरतम भाव से असंख्यात प्रकार का होता है।
* प्रश्न-सम्यग्दृष्टि तथा सम्यग्दर्शन में क्या अन्तर है ? इसके उत्तर में आगमशास्त्रों में लिखा गया है-दोनों में अपाय तथा सदद्रव्य की अपेक्षा अन्तर है। सम्यग्दर्शन अपाय मतिज्ञान