________________
१८ ] श्रीतत्त्वार्थाधिगमसूत्रे
[ ११५ (२) स्थापना निक्षेप-स्थापना यानी आकृति-प्रतिबिम्ब । किसी भी काष्ठ, पुस्त, चित्र, अक्ष निक्षेपादि में 'यह जीव है' इस तरह का जो प्रारोपण करते हैं, उसे स्थापना जीव कहते हैं। जैसे-देवताओं की मूत्ति-प्राकृति आदि में कि ये इन्द्र हैं, ये रुद्र हैं, ये स्कन्द हैं, या ये विष्णु हैं, इत्यादि। किसी भी वस्तु-पदार्थ में अन्य वस्तु-पदार्थ का आरोपण करने को 'वह यही वस्तु-पदार्थ है' स्थापना निक्षेप कहते हैं। चाहे वह वस्तु उसके समान आकार को धारण करने वाली हो या न हो तो भी। जैसे-श्रमण भगवान महावीर स्वामी के आकार वाली मूत्ति-प्रतिमा में यह प्रारोपण करना कि ये वे ही श्रमण भगवान महावीर स्वामी हैं, जिन्होंने देवरचित दिव्य समवसरण में बैठकर जगत की जनता को मोक्ष के मार्ग का सद्धर्मोपदेश दिया था। इसको साकार में स्थापना निक्षेप समझना चाहिए और कोई शतरंजादि मोहरों में जो राजा, मन्त्री, हाथी, घोडा आदि का प्रारोपण करते हैं, उसको अतदाकार में स्थापना निक्षेप कहना चाहिए। इधर प्रश्न यह होगा कि नाम और स्थापना निक्षेप में गूगों की अपेक्षा नहीं रखी जाती है, तो फिर दोनों में अन्तर क्या ? इसका उत्तर यह है कि नामनिक्षेप में गुणों की अपेक्षा का जैसा सर्वथा अभाव है, वैसा स्थापना निक्षेप में नहीं है। कारण कि नाम रखने में किसी प्रकार का नियम नहीं है, किन्तु स्थापना के लिए तो अनेक प्रकार के नियम कहे हैं और अन्य बात यह भी है कि नाम में आदरसत्कार का अनुग्रह नहीं होता है, किन्तु स्थापना में वह अवश्य ही होता है। जिस मूत्ति-प्रतिमा में जिसकी स्थापना की गई है, सो उस मूर्ति का भी तद्समान ही आदर-सत्कार-बहुमान होता है । जैसे-श्री ऋषभदेव भगवान की मूत्ति में ऋषभदेव भगवान की स्थापना की गई है, तो उस मूत्तिप्रतिमा का भी अवश्य ही श्री ऋषभदेव भगवान के समान आदर-सत्कार बहुमान किया जाता है।
(३) द्रव्यनिक्षेप-वस्तु-पदार्थ की भूतकाल की या भविष्यत्काल की जो अवस्था है, वही द्रव्यनिक्षेप है। अर्थात् जो अर्थ भावनिक्षेप की पूर्व अवस्था रूप हो या उत्तर अवस्था रूप हो, उसे ही द्रव्यनिक्षेप कहते हैं। सारांश यह है कि किसी भी वस्तु-पदार्थ की आगे जो पर्याय होने वाली है, उसको पूर्व से ही उस पर्याय रूप कहना इसको द्रव्यनिक्षेप कहते हैं। जैसे-किसी राजपुत्र को या युवराज को राजा कहना। क्योंकि वह वर्तमानकाल में राजा नहीं है, किन्तु भविष्यत्काल में होने वाला है। इसलिए उसको वर्तमानकाल में राजा कहना यह द्रव्यनिक्षेप का विषय है। अथवा अतीत अनागत पर्याय रूप से वर्तमान वस्तु-पदार्थ के व्यवहार करने को द्रव्यनिक्षेप कहते हैं। जैसे-राज्य छोड़ देने वाले को भी राजा-महाराजा कहना, भूतपूर्व महाराजा इत्यादि । वह द्रव्यनिक्षेप है।
(४) भावनिक्षेप-विश्व में रही हुई वस्तु-पदार्थ की वर्तमान अवस्था। अर्थात् किसी भी वस्तु-पदार्थ का उसकी वर्तमान पर्याय की अपेक्षा कथन करना सो ही भावनिक्षेप है। सारांश यह है कि जो शब्द पूर्ण रूप से व्यापत्ति और प्रवृत्ति से अर्थयुक्त हो, उसको भावनिक्षेप कहते हैं । जैसे कि वर्तमान में राज्य करता है, इसलिए उसको राजा कहना। अथवा मनुष्य पर्याय युक्त जीव को मनुष्य कहना, इत्यादि ।
जिस तरह से इन नामादि चार निक्षेपों को यहाँ पर जीव द्रव्य की अपेक्षा घटित करके बताया है, उसी तरह विश्व के सर्व द्रव्यों और उनकी पर्यायों तथा सम्यग्दर्शन इत्यादि की अपेक्षा भी