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प्रथमोऽध्यायः
अपरोपदेश-इत्यनर्थान्तरम् । अनादिकालीनविश्वे परिभ्रमतः कर्मणः स्वकृतस्य विविधं पुण्यपापफलमनुभवतो जीव: ज्ञान-दर्शनोपयोगस्वाभाव्यात् परिणामाध्यवसायानां स्थानान्तराणि गच्छतोऽनादिकालीनमिथ्यादृष्टिवतोऽपि सतः परिणामाध्यवसायविशेषाद् अपूर्वकरणं तादृग् भवति । येनास्यानुपदेशात् सम्यग्दर्शनमुत्पद्यते इति । तदेवं निसर्गसम्यग्दर्शनम् । अधिगमः अभिगमः आगमशास्त्रनिमित्तं श्रवणं शिक्षा उपदेश इत्यनर्थान्तरम् । तदेवं परस्योपदेशाद् यत् तत्त्वार्थश्रद्धानं भवति, तद् अधिगमसम्यग्दर्शनं इति । सम्यग्दर्शनस्योत्पत्तिः अन्तरंग-बाह्याभ्याम् द्वाभ्यां निमित्ताभ्यां भवति । विशिष्टशुभात्मपरिणामान्तरंगभेदश्च गुरूपदेशादिबाह्यनिमित्तानि निसर्गात्= परस्योपदेशरहितक्षयोपशमादिस्वाभाविकपरिणामात् (अध्यवसायात्), अथवा अधिगमाद् =परस्योपदेशादिबाह्यनिमित्तत्वाद् अर्थात्-शास्त्रश्रवणाद् वा गुरोः सदुपदेशादिबाह्यनिमित्तत्वाच्च सम्यग्दर्शनं समुत्पद्यते ॥३॥
ॐ सूत्रार्थ-वह सम्यग्दर्शन निसर्ग (पर के उपदेश बिना क्षयोपशम आदि स्वाभाविक परिणाम-अध्यवसाय मात्र) से और अधिगम (पर के उपदेश आदि बाह्यनिमित्त) से उत्पन्न होता है ॥ ३ ॥
ॐ विवेचन पूर्व के सूत्र में सम्यग्दर्शन का लक्षण कहा गया है। वह सम्यग्दर्शन दो प्रकार का है। एक निसर्गसम्यग्दर्शन और दूसरा अधिगमसम्यग्दर्शन । निसर्ग यानी बाह्य निमित्त बिना स्वाभाविक । अधिगम यानी गुरु के उपदेश आदि बाह्य निमित्तपूर्वक ।
(१) बाह्य निमित्त बिना स्वाभाविक परिणाम-अध्यवसाय मात्र से उत्पन्न हुआ सम्यग्दर्शन निसर्गसम्यग्दर्शन कहा जाता है। ..
(२) गुरु-उपदेश आदि बाह्य निमित्त से उत्पन्न हुआ सम्यग्दर्शन अधिगमसम्यग्दर्शन कहा जाता है।
पदार्थों को यथार्थ रूप से जानने की रुचि संसारवर्ती जीव को सांसारिक और आध्यात्मिक दोनों प्रकार की अभिलाषाओं से होती है। जो धन, धान्य और प्रतिष्ठादि सांसारिक वासनाओं के लिए तत्त्वजिज्ञासा अर्थात् वस्तु-पदार्थ का ज्ञान होता है, वह सम्यग्दर्शन नहीं है। कारण कि उसका परिणाम मोक्ष की प्राप्ति नहीं होने से सिर्फ संसार की वृद्धि है। इसलिए कहा है कि आध्यात्मिक विकास के लिए जो तत्त्व की रुचि है वह केवल आत्मा की तृप्ति के लिए होती है, वही सम्यग्दर्शन है। सम्यग्दर्शन की उत्पत्ति अन्तरंग और बाह्य निमित्त से होती है। आत्मा के परिणाम अन्तरंग निमित्त हैं और गुरु का उपदेश आदि बाह्य निमित्त हैं। केवल अन्तरंग निमित्त
प्रगट होने वाला सम्यग्दर्शन निसर्ग सम्यग्दर्शन है और बाह्य निमित्त द्वारा अन्तरंग निमित्त से