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________________ मूलसूत्रम् निर्देश-स्वामित्व-साधनाधिकरण-स्थितिविधानतः ॥ १-७॥ * तस्याधारस्थानम्निद्देसे पुरिसे कारण कहिं केसु कालं कइविहं ।। [अनुयोगद्वार, सूत्र-१५१] मूलसूत्रम् सत्-संख्या-क्षेत्र-स्पर्शन-कालाऽन्तर-भावाऽल्प-बहुत्वैश्च ॥ १८ ॥ * तस्याधारस्थानम् से कि तं अणुगमे ? नवविहे पण्णत्ते। तं जहा-[१] संतपयपरूवणया [२] दव्वपमाणं च [३] खित्त [४] फुसरणा य [५] कालो य [६] अंतरं [७] भाग [८] भाव [६] अप्पबहुं चेव । [अनुयोगद्वार, सूत्र-८०] मूलसूत्रम् ___मति-श्रुता-ऽवधि-मनःपर्याय-केवलानि ज्ञानम् ॥ १६ ॥ * तस्याधारस्थानम्(१) पंचविहे गाणे पण्णत्ते। तं जहा-पाभिणिबोहियणाणे, तुयनारणे, प्रोहिणाणे, मरणपज्जवरणाणे, केवलनाणे।। स्थानाङ्ग-स्थान-५, उद्देश-३, सूत्र-४६३] (२) नाणं पंचविहं पण्ए. ते। तं जहा-प्राभिरिणबोहियनाणं, सुयनाणं, मोहिनाणं, मरणपज्जवनारणं, केवलनाणं । [ * भगवतीशतक ८, उद्देश-२, सूत्र-३१८ । * नंदिसूत्र-१ । * अनुयोगद्वार, सूत्र-१ । ] मूलसूत्रम् तत्प्रमाणे ॥ १-१०॥ * तस्याधारस्थानम्(१) दुविहे नाणे पण्णत्ते। तं जहा-पच्चकखे चेव, परोक्खे चेव । [स्थानाङ्ग-स्थान २, उद्देश-१, सूत्र-७१]
SR No.022532
Book TitleTattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tikat tatha Hindi Vivechanamrut Part 01 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaysushilsuri
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year1994
Total Pages166
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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