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* हिन्दीपद्यानुवाद
अन्यदृष्टि की अपेक्षा का, विरोधी जो है नहीं। ज्ञान नय है प्रति अपेक्षी, भेद सब है पाँच ही ।। नैगम तथा संग्रह तदन्तर, व्यवहार ऋजुसूत्र है। शब्द तीनों भेद युत, दो भेद युत नैगम भी है ।। २४ ।।
॥ इति श्रीतत्त्वार्थाधिगमसूत्र के प्रथमाध्याय का
हिन्दीपद्यानुवाद समाप्त ॥