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________________ तृतीयाध्याय : [ ८१ हे णामं दहे पण्णत्ते, दोजोऋण सहस्साइं आयामेणं एगं जोअणसहस्सं विक्खंभेणं दस जोअणाई उव्वेहेणं अच्छे रययामयकूले एवं आयामविक्खंभविणा जा चेव पउमद्दहस्स वत्तव्वया सा चैव अव्वा, पउमप्पमाणं दो जोगाई अट्ठो जाव महाप मद्दहवण्णाभाई हिरी अ इत्थ देवी जाव पओिवमट्टिया परिवसइ । जम्बू महाहिमवन्ताधिकार सूत्र० ८०. तिfiars गामं दहे पण्णत्ते. चत्तारिजोअणसहस्साइं आयामेणं दोजोअणसहस्साइं विक्खंभेगां दसजोअणसहस्साइं उव्वेहेणं...... धिई अ इत्थ देवी पलिवमट्टिया परिवसइ । जम्बू० सू० ८३ से ११०. षड्ह दाधिकार छाया महाहिमवतः बहुमध्यदेशभागः अत्रान्तरे एकः महापद्महूदः नाम हृदः प्रज्ञप्तः । द्वियोजनसहस्रमायामतः एकयोजन सहस्र विष्कम्भतः दशयोजनान्युद्वेधेन अच्छः रजतमयकूलः एवं श्रयामविष्कम्भविहीनः या चैव पद्महूदस्य वक्तव्यता सा चैव ज्ञातव्या । पद्मप्रमाणं द्वे योजने अर्थः यावत् महापद्महू दवर्णाभ: ही: च अत्र देवी यावत् पल्योपमस्थितिका परिवसति । तिर्गिछिहृदः नाम हृदः प्रज्ञप्तः चत्वारियोजनसहस्राणि यमतः द्वे योजनसहस्रे विष्कम्भतः दशयोजन सहस्राणि उद्बधेन • धृतिश्च अत्र देवी पल्योपमस्थितिका परिवसति । भाषा टीका - महाहिमवान् के बीचों बीच एक महापद्म नाम का सरोबर है। इसकी लम्बाई दो सहस्र योजन और चौड़ाई एक सहस्र योजन की है, और गहराई दस योजन है | इसके किनारे चांदी के बने हुए हैं। लम्बाई चौड़ाई के अतिरिक्त शेष बातें पद्म
SR No.022531
Book TitleTattvartha Sutra Jainagam Samanvay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaram Maharaj, Chandrashekhar Shastri
PublisherLala Shadiram Gokulchand Jouhari
Publication Year1934
Total Pages306
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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