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________________ तृतीयाध्यायः यह पर्वत चौकोर इकसार हैं, और सामान्य रूप से भेद रहित हैं। यह एक दूसरे का उल्लंघन नहीं करते । यह लम्बाई, चौड़ाई, रचना और परिणाह वाले हैं। इनके दोनों ओर कमल की बनी हुई वेदिका है, जो दोनों ओर दो बनखण्डों से घिरी हुई है। पद्ममहापद्मतिगिंछकेसरिमहापुण्डरीकपुण्डरीका ह्रदास्तेषामुपरि। ३, १४. जंबुद्दीवे छ महदहा पण्णता, तं जहा-पउमदहे महापउमइहे तिगिच्छदहे केसरिदहे पोंडरीयहहे महापोंडरीयइहे । ___ स्था० स्थान ६, सू० ५२४. छाया- जम्बूद्वीपे षट् महाहू दाः प्रज्ञप्तास्तद्यथा - पद्महद : महापद्महूदः तिगिच्छह दः केसरिहूदः पुण्डरीकह दः महापुण्डरीकहदः । भाषा टीका- जम्बूद्वीप में छै महाह,द (तालाव) बतलाये गये हैं- पद्महद, महापद्मह,द, तिगिछ, केसरि, पुण्डरीक और महापुण्डरीक। प्रथमो योजनसहस्रायामस्तदईविष्कम्भो हृदः । दशयोजनावगाहः। तस्स णं बहुसमरमणिज्जस्स भूमिभागस्स बहुमज्झदेसभाए इत्थणं इक्के महे पउमदहे णामं दहे पगणत्ते पाईणपडिणायए उदीणदाहिणविच्छिणणे इक्कं जोयणसहस्सं आयामेणं पंच जोमणसयाई विक्खंभेणं दस जोअणाई उव्वेहेणं अच्छे । जम्बूद्वीपप्रज्ञाप्ति पद्महदाधिकार. छाया- तस्य बहुसमरमणीयस्य भूमिभागस्य बहुमध्यदेशभागे अत्रावकाशे
SR No.022531
Book TitleTattvartha Sutra Jainagam Samanvay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaram Maharaj, Chandrashekhar Shastri
PublisherLala Shadiram Gokulchand Jouhari
Publication Year1934
Total Pages306
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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