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तत्त्वार्थसूत्रजैनाऽऽगमसमन्वयः
निर्मलान्यैः एवमादिभिः अशुभैः विक्रियैः प्रहरणशतैः अनुबद्धतीववैराः परस्परं वेदनं उदीरयन्ति । ते नरकाः अन्तर्दृ त्ता बहिश्चतुरंता अवस्तात् क्षुरप्रसंस्थाना संस्थिता नित्यान्धकारतमसा व्यपगतग्रहचन्द्रसूर्यनक्षत्रज्योतिष्कप्रभा मेदवसापूतिपटलरुधिरमांसचिखललिप्तानुलेपनतला अश्रुचिविश्राः परमदुर्गन्धाः कापोताग्निवर्णाभाः कर्कशस्पर्शाः दुरघिसहाः अशुभाः नरकाः अशुभनरकेषु वेदनाः इत्यादि। नैरयिकाणां तिस्रः लेश्याः प्रज्ञप्ताः, तपथा-कृष्णलेश्या, नीललेश्या, कापोतलेश्या । अतिशीतं अत्युष्णं, अतितृष्णा, अतिक्षुधा, अतिभयं वा नरके
नैरयिकाणां दुःखमसातं अविश्रामं इत्यादि । भाषा टीका - वहां परस्पर एक दूसरे के शरीर को पीड़ा देते हुए वेदना उत्पन्न करते हैं।
अनेक प्रकार के शस्त्र-मुद्गर, मुसण्डि (बन्दूक), क्रकच (आरा) शक्ति, हल, गदा, मूसल, चक्र, कुंत (बी), तोमर, शून, लकड़ी, भिडिपाल, सद्वल, पट्टिश, चमड़े में लिपटा हुआ मुद्गर, मुस्टिक, तलवार, खेटक, चङ्ग, धनुष वाण, कनक कल्पिनी नाम का वाण भेद, कासी (बिसौना), परशु (कुल्हाड़ा) की तेज धार तथा अन्य अशुभ विक्रियाओं से सैकड़ों चोट करते हुए तीव्र वैर का बन्धन करके एक दूसरे को वेदना उत्पन्न करते हैं।
वह नरक के बिल अन्दर से गोल, बाहिर से चौकोर, तथा नीचे छुरी की रचना के समान हैं। वहाँ सदा गहन अन्धकार रहता है-ग्रह, चन्द्र, सूर्य और नक्षत्र ज्योतिष्कों का प्रकाश कभी नहीं पहुँचता । चर्बी, राध, रुधिर और मांस की कीचड़ से सब ओर पुते हुए, अपवित्र आसन वाले, परम दुर्गन्ध वाले, मैली अग्नि के समान वर्ण की कान्ति वाले, कर्कश स्पर्श वाले, कठिनता से सहे जाने योग्य, अशुभ होतेहैं। उनके कष्ट भी अशुभ ही होते हैं। इत्यादि।
नारकियों के तीन लेश्या होती हैं- कृष्णलेश्या, नीमलेश्या, और कापोतलेश्या ।