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तत्त्वार्थसूत्रजनाऽऽगमसमन्वयः
भाषा टीका-विग्रहगति को प्राप्त करने वाले नारकियोंके दो शरीर होते हैं। तेजस और कार्माण । इसी प्रकार सब गतियों में वैमानिक देवों तक के तैजस और कार्मण होते हैं।
प्रश्न- भगवन् ! जीव गर्भ धारण करने के लिये शरीर सहित जाता है अथवा शरीर रहित जाता है ?
सत्तर- गौतम ! कथञ्चित् यह शरीर सहित जाता है और कथञ्चित् यह शरीर रहित जाता है।
प्रश्न- वह किस कारण से ?
उत्तर- गौतम ! औदारिक, वैक्रियिक, आहारक की अपेक्षा से शरीर रहित गमन करता है तथा तैजस कार्मण को अपेक्षा से शरीर सहित गमन करता है।
संगति – उपरोक्त कथन से प्रगट किया गया है कि यद्यपि कार्मण भी शरीर है क्रिन्तु वह उपभोग रहित है। गर्भसम्मूर्छनजमाद्यम्।
२, ४५ उरालिप्रसरीरे णं भंते कतिविहे पएणते? गोयमा! दुविहे पण्णत्ते, तं जहा - समुच्छिम. गब्भवक्कंतिय ।
प्रज्ञापना पद २१. छाया- औदारिकशरीरं भगवन् कतिषिधं प्रज्ञप्तं? गौतम! द्विविधं प्रज्ञप्तं,
तपथा - सम्मृर्छनम्........ गर्भव्युत्क्रांतिकम्। प्रश्न -भगवन् ! औदारिक शरीर कितने प्रकार का बतलाया गया है।
उत्तर - गौतम ! वह दो प्रकार का बतलाया गया है-सम्मूर्छन जन्म वालों के और गर्भ जन्म वालों के।
औपपादिकं वैक्रियिकम्।
परइयाणं दो सरीरगा परबत्ता, तं जहा-अभंतरगे चेव