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________________ द्वितीयाध्यायः [ ५५ दोण्हं उववाए पएणत्ते देवाणं चेव नेरइयाणं चेव । स्थानांग स्थान २ रहे० ३, सूत्र ८५. छाया- द्वयोः उपपादः प्रज्ञप्तः-देवानां चैव नेरयिकानां चैव । भाषा टीका - उपपाद जन्म दो के होता है - देवों के और नारकियों के । संगति – उपरोक्त सूत्रों का आगमवाक्य से केवल शाब्दिक भेद है। “शेषाणां सम्मूर्छनम् ॥ २, ३५. संमुच्छिमाय इत्यादि । प्रज्ञापना पद १. सूत्रकृतांग द्वितीय श्रुत स्कन्ध, तृतीयाध्ययन. छाया- सम्मूर्च्छनानि च । इत्यादि । भाषा टीका - (गर्भ तथा उपपाद जन्म वालों से शेष जीव) सम्मूर्छन होते हैं। संगति-आगमवाक्य में इस स्थल पर सम्मूर्छनों का बड़े विस्तार से वर्णन किया है। "औदारिकवैक्रियिका हारकतैजसकार्मणानि शरीराणि ॥ कति णं भंते! सरीरया पएणता? गोयमा! पंच सरीरा पएणत्ता, तं जहा- "ौरालिते, वेउव्विए, आहारए, तेयए, कम्मए ।” प्रमापना शरीरपद २१. छाया- कति भदन्त ! शरीराणि प्रजातानि ? गौतम! पञ्च शरीराणि प्रज्ञप्तानि, तद्यथा- औदारिका, वैक्रियिकः, आहारक, तेजसः, कार्मणम् ।
SR No.022531
Book TitleTattvartha Sutra Jainagam Samanvay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaram Maharaj, Chandrashekhar Shastri
PublisherLala Shadiram Gokulchand Jouhari
Publication Year1934
Total Pages306
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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