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________________ ३८ ] तत्त्वार्थसूत्रजनाऽऽगमसमन्वयः दर्शनावरणीय को नष्ट करने वाले, आवरणरहित, आवरण को निकालने वाले, इस प्रकार दर्शनावरणीय कर्म से सब प्रकार छूटे हुए; साता वेदनीय को नष्ट करने वाले, असाता वेदनीय को नष्ट करने वाले, वेदना रहित, वेदना को दूर करने वाले, वेदना को नष्ट करने वाले, शुभ और अशुभ वेदनीय फर्म से सब प्रकार छूटे हुए; क्रोध मान, माया लोभ को नष्ट करने वाले, प्रम (राग) को नष्ट करने वाले, दोष को दूर करने वाले, दर्शन मोहनीय को नष्ट करने वाले, चारित्रमोहनीय को नष्ट करने वाले, मोह रहित, मोह को दूर करने वाले, मोह को नष्ट करने वाले इस प्रकार मोहनीय कर्म से सब प्रकार छूटे हुए; नरक आयु को नष्ट करने वाले, तियेच आयु को नष्ट करने वाले, मनुष्य आयु को नष्ट करने वाले, देव आयु को नष्ट करने करने वाले, आयु कर्म रहित, आयु कर्म को दूर करने वाले, इस प्रकार आयु कर्म से सब प्रकार छूटे हुए; गति, जाति, शरीर, अङ्गोपाङ्ग, बन्धन, संघात, संस्थान और अनेक शरीरों के समूह के संघात से छूटे हुए, शुभ नाम कर्म को नष्ट करने वाले, अशुभ नाम कर्म को नष्ट करने वाले, नाम कर्म रहित, नाम कर्म को दूर करने वाले, नाम कर्म को नष्ट करने वाले और इस प्रकार शुभ तथा अशुभ नाम कर्म से छूटे हुए; उच्च गोत्र कर्म को नष्ट करने वाले, नीच गोत्र कर्म को नष्ट करने वाले, गोत्र रहित, गोत्र कर्म को दूर करने वाले, गोत्र कर्म को नष्ट करने वाले, और इस प्रकार उच्च तथा नीच गोत्र कर्म से सब प्रकार छूटे हुए; दानान्तराय को नष्ट करने वाले, लाभान्तराय को नष्ट करने वाले, भोगान्तराय को नष्ट करने वाले, उपभोगान्तराय को नष्ट करने वाले, वीर्यान्तराय कर्म को नष्ट करने वाले, अन्तराय कर्म रहित, अन्तराय कर्म को दूर करने वाले, अन्तरायकर्म को नष्ट करने वाले इस प्रकार अन्तराय कर्म से सब प्रकार छूटे हुए; सिद्ध, बुद्ध, मुक्त, निर्वाण प्राप्त, कर्मों का अन्त करने वाले, सब प्रकार के दुःखों से सर्वथा मुक्त भाव को क्षय निष्पन्न कहते हैं, इस प्रकार क्षायिकभाव का वर्णन किया गया। क्षायोपशमिक भाव किसे कहते हैं ? वह दो प्रकार का होता है-क्षायोपशमिक और क्षयनिष्पन्न । क्षयोपशम किसे कहते हैं ? चार घातिया कर्मो के क्षयोपशम होने को क्षायोपशमिक कहते हैं । वह इस प्रकार हैं-ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय, मोहनीय और अन्तराय का क्षयोपशम क्षयोपशम कहलाता है। क्षयोपशम निष्पन्न किसे कहते हैं ? वह अनेक प्रकार का कहा गया है-क्षयोपशमिक मतिज्ञान लब्धि से लगाकर क्षयोपशम मनःपर्यय ज्ञान लब्धि तक, क्षयोपशमिक मत्यज्ञान लब्धि, क्षयोपशम श्रुताज्ञानलब्धि, क्षयोपशमिक
SR No.022531
Book TitleTattvartha Sutra Jainagam Samanvay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaram Maharaj, Chandrashekhar Shastri
PublisherLala Shadiram Gokulchand Jouhari
Publication Year1934
Total Pages306
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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