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________________ २६२ ] तत्वार्थ सूत्र जैनाऽऽगमसमन्वय : २७ - किन्तु अणु भेद से ही होता है, संघात से नहीं होता । २८ नेत्र इन्द्रिय से दिखाई देने वाला स्कन्ध भेद और संघात दोनों से ही होता है । द्रव्य का लक्षण है २९- द्रव्य का लक्षण सत् ३० – उत्पाद ( उत्पत्ति ), व्यय ( बिनाश ), और धौव्य ( स्थिर मौजूदगी ) सहित को सत् कहते हैं ३१ - जो तद्भाव रूप से अव्यय अर्थात् तीनों काल में विनाश रहित हो उसे नित्य कहते हैं । 1 ३२ – मुख्य करने वाली अर्पित और गौण करने वाली अनर्पित से वस्तु की सिद्ध होती है । स्कन्धों के बन्ध का वर्णन -- ३३ - परमाणुओं के स्कन्धों का बन्ध स्निग्धता अथवा चिकनाई और रूक्षता अर्थात् रूखेपन से होता है । नहीं होता । ३४ - जघन्यगुरण * सहित परमाणु में बंध ३५ - गुण की समानता होने पर सहसों का ३६ - किंतु दो अधिक गुण वालों का ही बन्ध होता है । ३७ - औरबन्ध अवस्था में अधिक गुण सहित पुद्गल अल्प गुण सहित को परिणामाते हैं । अर्थात् अल्पगुण के धारक स्कन्ध अधिक गुण के स्कन्ध रूप हो जाते हैं । 1 द्रव्य का दूसरा लक्षण ३८ - गुण और पर्याय वाला द्रव्य होता है । महीं होता । * जिस परमाणु में स्निग्धता अथवा रूक्षता का एक अविभागी प्रतिच्छेद रह जावे वह अघन्य गुण वाला है ।
SR No.022531
Book TitleTattvartha Sutra Jainagam Samanvay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaram Maharaj, Chandrashekhar Shastri
PublisherLala Shadiram Gokulchand Jouhari
Publication Year1934
Total Pages306
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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