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________________ २५६ ] तत्त्वार्थसूत्रजनाऽऽगमसमन्वय : २९-हैमवत क्षेत्र के मनुष्यों की आयु एक पल्य, हरिवर्ष वालों की दो फ्ल्य और देवकुरु वालों की तीन पल्य होती है। ३०-इन दक्षिण के क्षेत्रों के समान ही उत्तर के क्षेत्रों की रचना और आयु है। ३१–विदेह क्षेत्रों में संख्यात वर्ष की आयु वाले मनुष्य होते हैं। ३२--भरत क्षेत्र जम्बूद्वीप का एक सौ नव्वेवां (१०) भाग है। अढाई द्वीप का वर्णन३३–धातकीखंड नाम के दूसरे द्वीप में भरत आदि क्षेत्र दो २ हैं। ३४-पुष्करद्वीप के आधे भाग में भी भरत आदि क्षेत्र दो २ हैं । ३५–मनुष्य मानुषोत्तर पर्वत से पहिले २ ही रहते हैं । ३६-मनुष्यों के दो भेद हैं—आर्य और म्लेच्छ । ३७–देवकुरु तथा उत्तरकुरु को छोड़कर पांच भरत, पांच ऐरावत और पांच विदेह इस प्रकार पन्द्रह कर्मभूमियां हैं। ३८ मनुष्यों की उत्कृष्ट स्थिति तीन पल्य और जघन्य अन्तर्मुहुर्त है। ३६-तिर्यञ्चों की भी उत्कृष्ट आयु तीन पल्य और जघन्य अन्तर्मुहुर्त होती है। चतुर्थ अध्याय चार प्रकार के देव१-देवों के चार समूह हैं-(भवनवासी, व्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिक)। २-भवनवासी, व्यन्तर, ज्योतिष्कों में कृष्ण, नील, कापोत और पीत ये चार लेश्या होती हैं। ३-भवनवासियों के दश भेद, व्यन्तरों के पाठ, ज्योतिष्कों के पांच और कल्पोपपनों के बारह भेद होते हैं । + देखो अध्याय ४ सूत्र १७.
SR No.022531
Book TitleTattvartha Sutra Jainagam Samanvay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaram Maharaj, Chandrashekhar Shastri
PublisherLala Shadiram Gokulchand Jouhari
Publication Year1934
Total Pages306
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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