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तत्वार्थसूत्रजैनाऽऽगमसमन्वय :
२३ - लट, चिउंटी, भौंरा और मनुष्य आदि के क्रम से एक२ इन्द्रिय अधिक २ होती है । २४ - मन सहित जीवों को संज्ञी कहते हैं । विग्रह गति
२५ – नया शरीर धारण करने के लिये की जाने वाली गति में कार्माण योग रहता है । २६ जीव और पुद्गलों का गमन आकाश के प्रदेशों की श्रेणि का अनुसरण करके होता है ।
२७ - मुक्त जीव की गति वक्रता रहित ( मोड़े रहित ) सीधी होती है ।
२८ – और संसारी जीव की गति चार समय से पहिले २ विग्रहवती वा मोड़े वाली है।
२९ - मोड़े रहित गति एक समय मात्र ही होती है।
३० - विग्रह गति वाला जीव एक समय, दो समय अथवा तीन समय तक * अनाहारक रहता है ।
तीन जन्म
३१ – सम्मूर्छन, गर्भ, और उपपाद यह तीन जन्म होते हैं । ३२ – उन तीनों जन्मों की नौ योनियां होती हैं—
सचित्त, श्रचित, सचित्ताचित्त, शीत, उष्ण, शीतोष्ण, संवृत, वितृत और संवृतविवृत ।
३३ - जरायुज ( जरायु में लिपटे हुए उत्पन्न होने वाले), अंडज ( अंडे से उत्पन्न होने वाले ) और पोत ( जो माता के उदर से निकलते ही चलने फिरने लगे) जीवों के गर्भ जन्म होता है।
३४ - चारों प्रकार के देवों और नारकी जीवों के उपपाद जन्म होता है । ३५ - - इनसे अविशिष्ट संसारी जीवों का सम्मूर्छन जन्म होता है ।
* दारिक, वैक्रिक और आहारक शरीर तथा छहों पर्याप्तियों के योग्य पुद्गलवर्गणा के ग्रहण को आहार कहते हैं। जीव जब तक ऐसे आहार को ग्रहण नहीं करता है, तब तक उसे अनाहारक कहते हैं ।