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________________ २३४ ] तत्त्वार्थसूत्रजैनाऽऽगमसमन्वयः एकान्तमन्तं गच्छति । एवं खलु गौतम! ० । कथं- भगवन् ! निरिन्धनतयाऽकर्मणः गतिः? गौतम! अथ यथानामकःधूमस्येंधनविप्रमुक्तस्य ऊर्ध्वं विस्रसया निर्विघातेन गतिः प्रवर्तते, एवं खलु गौतम! ० । कथं नु भगवन्! पूर्वप्रयोगेणाऽकर्मणः गतिः प्रज्ञप्ता ? गौतम! अथ यथानामकः, काण्डस्य कोदण्डविप्रमुक्तस्य लक्ष्याभिमुखी निर्विघातेन गतिः प्रवर्तति । एवं खलु गौतम! निःसंगतया निरागतया यावत् पूर्वप्रयोगेण अकर्मणः गतिः प्रज्ञप्ता । भाषा टीका - [अब प्रश्न करते हैं कि जीव मुक्त होने पर ऊपर को ही क्यों जाता है सो इसके उत्तर में सूत्रार्थ कहते हैं] प्रश्न - भगवन् ! क्या कर्म रहित जीव के गति होती है ? उत्तर - हाँ, होती है ? प्रश्न - उनके गति किस प्रकार होती है ? उत्तर – हे गौतम ! संग रहित होने से, राग (रंग) रहित होने से, स्वाभाविक ऊर्ध्व गमन स्वभाव वाला होने से, कर्म बन्ध के नष्ट हो जाने से, इंधन रहित होने से और पूर्व प्रयोग से कर्म रहित जीव के गति होती है। प्रश्न – भगवन् ! संग रहित होने से, राग (रंग ) रहित होने से, स्वाभाविक ऊर्ध्वगमन स्वभाववाला होने से, कर्म बन्ध के नष्ट हो जाने से, इंधन रहित होने से और पूर्व प्रयोग से कर्म रहित जीव के गति किस प्रकार होती है ? उत्तर – जिस प्रकार कोई पुरुष छिद्ररहित बिना टूटी हुई सुखी तुम्बी को क्रमसे लाता हुआ पहिले दाभ और कुशाओं से बार २ लपेटता है । इसके पश्चात् वह उसके ऊपर मिट्टी के आठ लेप करता है । फिर उसको धूप में रख कर बार बार सुखाता है । इसके पश्चात् वह उस तुम्बी को मनुष्य के डूबने योग्य अगाध गहन जल में फेंक देता है। तब हे गौतम! क्या वह तुम्बी उन आठों मिट्टी के लेपों के बोझ से अत्यन्त भारी हो जाने के कारण पानी के बिल्कुल नीचे के पृथ्वीतल पर जा पड़ेगी ? अवश्य जा पड़ेगी? इसके पश्चात् क्या वह तुम्बी जल के कारण धीरे २ मिट्टी के आठों लेपों के घुल जाने से पृथ्वी तल से ऊपर उठ कर जल के ऊपर आजाती है १ निश्चय से आजाती है । उसी
SR No.022531
Book TitleTattvartha Sutra Jainagam Samanvay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaram Maharaj, Chandrashekhar Shastri
PublisherLala Shadiram Gokulchand Jouhari
Publication Year1934
Total Pages306
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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