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________________ नवमोऽध्याय: [ २२७ नवीन कर्मों का निरोध करने के कारण होने से संवर के कारण हैं और पूर्व बंधे कर्मों के नष्ट करने के निमित्त होने से निर्जरा के भी कारण हैं। ___ अब तपश्चरण आदि करने से जो निर्जरा होना कहा है वह समस्त सम्यग्दृष्टि जीवों के एक सी ही होती है अथवा भिन्न प्रकार की होती है यह बतलाने के लिये सूत्र कहते हैं सम्यग्दृष्टिश्रावकविरतानन्तवियोजकदर्शनमोहक्षपकोपशमकोपशान्तमोहक्षपकक्षीणमोहजिनाः क्रमशोऽसंख्येयगुणनिर्जराः। कम्मविसोहिमग्गणं पडुच्च चउदस जीवट्ठाणा पएणत्ता, तं जहा-'अविरयसम्मट्ठिी विरयाविरए पमत्तसंजए अप्पमत्तसंजए निअट्टीबायरे अनिअट्टिबायरे सुहुमसंपराए उवसामए वा खवए वा उवसंतमोहे खीणमोहे सजोगी केवली अयोगी केवली। समवायांग समवाय १४. छाया- कर्मविशुद्धिमार्गणां प्रतीत्य चतुर्दशजीवस्थानानि प्रज्ञप्तानि, तद्यथा अविरतसम्यग्दृष्टिः विरताविरतः प्रमत्तसंयतः अप्रमत्तसंयतः निवृत्तिबादरः अनिवृत्तबादरः सूक्ष्मसाम्परायः उपशमकः वा क्षपका वा उपशान्तमोहः क्षीणमोहः सयोगी केवली अयोगी केवली। भाषा टोका-कर्मों की विशुद्धि के मार्ग को दृष्टि से जीव स्थान चौदह होतेहैं: अविरतसम्यग्दृष्टि, देशव्रत के धारक श्रावक, प्रमत्तसंयत वाले मुनि, अप्रमत्तसंयत, निवृत्तिबादर, अनिवृत्ति बादर, सूक्ष्मसाम्पराय उपशमक अथवा क्षपक, उपशान्त मोह, क्षीण मोह, सयोगी केवलो (जिन) और अयोगी केवली [ इनके क्रमसे असंख्यातगुणो निर्जरा होतो है।] पुलाकबकुशकुशीलनिर्ग्रन्थस्नातका निर्ग्रन्थाः। ६, ४६.
SR No.022531
Book TitleTattvartha Sutra Jainagam Samanvay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaram Maharaj, Chandrashekhar Shastri
PublisherLala Shadiram Gokulchand Jouhari
Publication Year1934
Total Pages306
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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