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________________ सामोऽध्यायः [ १७७ ५. मत्सरता - अमुक ग्रहस्थ ने इस प्रकार का दान दिया है तो क्या मैं उससे किसी प्रकार न्यूनता रखता हूँ ? नहीं, अतः मैं भी दान दूंगा। इस प्रकार असूया वा अहंकार पूर्वक दान करना। जीवितमरणाशंसामित्रानुरागसुखानुबन्धनिदानानि। ___ अपच्छिममारणंतियसंलेहणा झूसणाराहणाए पंच भइयारा जाणियव्वा न समायरियव्वा तं जहा-इहलोगासंसप्पनोगे, परलोगासंसप्पओगे, जीवियासंसप्पओगे, मरणासंसप्पओगे, कामभोगासंसप्पओगे। उपा० अभ्याय १ छाया- अपश्चिममारणान्तिकसल्लेखनाजषणाऽऽराधनायाः, पञ्चातिचाराः ज्ञातव्याः, न समाचरितव्याः, तद्यथा-इहलोकाशंसाप्रयोगः, परलोकाशंसाप्रयोगः, जोविताशंसाप्रयोगः, मरणाशंसाप्रयोगः काम भोगाशंसाप्रयोगः । भाषा टीका - आयु के अन्तिम भाग मरण समय में होने वाली सल्लेखना के पांच अतिचार जानने चाहियें। उन पर आचरण न करना चाहिये । वह यह हैं १. इहलोकाशंसाप्रयोग-मरने के पश्चात् इहलोक के सुखों की इच्छा करना। २. परलोकाशंसाप्रयोग-मरने के पश्चात् उत्तम देवलोक आदि के सुखों की इच्छा करना। ३. जीविताशंसाप्रयोग-जीवित ही रहने की इच्छा करना। ४. मरणाशंसाप्रयोग-दुख आदि से छूटने के लिये शीघ्र मरने की इच्छा .. कामभोगाशंसाप्रयोग-विशेष काम भोग की इच्छा करना। अनुग्रहार्थं स्वस्यातिसर्गो दानम् । समणोवासए णं तहारूवं समणं वा जाव पडिलाभेमाणे करना।
SR No.022531
Book TitleTattvartha Sutra Jainagam Samanvay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaram Maharaj, Chandrashekhar Shastri
PublisherLala Shadiram Gokulchand Jouhari
Publication Year1934
Total Pages306
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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