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________________ सप्तमोऽध्यायः [ १६७ मारणान्तिकी सल्लेखनां जोषिता। ७, २२. अपच्छिमा मारणंतिमा संलेहणा जूसणाराहणा । औपपा० सू० ५७. छाया- अपश्चिमा मारणांतिकी सल्लेखनां जूषणा आराधना । भाषा टीका- अन्तिम समय में मरते समय सल्लेखना को आराधना करे । शङ्काकांक्षाविचिकित्साऽन्यदृष्टिप्रशंसासंस्तवाः सम्यग्दृष्टेरतिचाराः।। ७, २३. सम्मत्तस्स पंच अइयारा पेयाला जाणियव्वा, न समायरियव्वा, तं जहा-संका कंखा वितिगिच्छा, परपासंडपसंसा, परपासंडसंथवो। उपासकदशांग, अध्याय १. छाया- सम्यक्त्वस्य पञ्चातिचाराः प्रधाना. ज्ञातव्याः । न समाचरितव्या, तद्यथा-शङ्का, कांक्षा, विचिकित्सा, परपाखण्डप्रशंसा, परपा खण्डसंस्तवः। . भाषा टीका- सम्यग्दर्शन के पांच प्रधान अतिचार होते हैं । उनको न करे। वह यह हैं-शंका, कांक्षा, विचिकित्सा, दूसरे के पाखंडी प्रसंशा करना, पाखंडी का ससर्ग फरना। व्रतशीलेषु पञ्च पञ्च यथाक्रमम् । भाषा टीका - इसी प्रकार पांच २ अतिचार पांच व्रतों, तीन गुणवतों और पारों शिक्षाप्रतों के क्रमशः हैं।
SR No.022531
Book TitleTattvartha Sutra Jainagam Samanvay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaram Maharaj, Chandrashekhar Shastri
PublisherLala Shadiram Gokulchand Jouhari
Publication Year1934
Total Pages306
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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