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सस्वार्थसूत्रजनाऽऽगमसमन्वयः
संयुक्त होते हैं ॥१॥ इस लोक में अच्छी तरह किये हुए कर्म परलोक में सुख, फलऔर विपाक से संयुक्त होते हैं ॥२॥ इस प्रकार धार भंग हैं।
संगति-विचार कर देखने पर पता चलेगा कि उपरोक्त मागम पाक्य भी यही कह रहे हैं कि हिंसा आदि पांचों पाप इस लोक और परलोक में पाप और दुःख को ही देने वाले हैं और स्वयं दुःख रूप हैं । सूत्र और आगम वाक्य में केवल कहने के ढंग का भेद है।
मैत्रीप्रमोदकारुण्यमाध्यस्थानि च सत्वगुणाधिकक्लिश्यमानाविनयेषु ।
मित्तिं भूणहिं कप्पए......
सूत्र कांग० प्रथम भुतिस्कंध अध्याय १५ गाथा ।। मुप्पडियाणंदा।
चौपपातिक सूत्र १ प्रश्न २० साणुकोस्सयाए।
भोपपातिक भगवदुपदेश। मज्झत्थो निजरापेही समाहिमणुपालए ।
__ आचारांग प्रथम श्रुतस्कंध अध्याय ८ ० - गाथा ५. छाया- मैत्री भूतैः कल्पयेत् ।
सुष्ठप्रत्यानन्दः । सानुक्रोशः।
मध्यस्थः निर्जरापेक्षी समाधिमनुपालयेत् । भाषा टीका-समस्त प्राणियों में मैत्री भाव रखे, अपने से अधिक गुण वालों को देखकर आनन्द में भर जावे, दुखी जीवों पर दया करे और अविनयी लोगों में समाधि का पालन करता, निर्जरा की अपेक्षा करता हुआ माध्यस्थ भाव रखे।