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पञ्चमोऽध्याय:
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उत्तर - गौतम ! पुद्गलास्तिकाय जीवों के लिये औदारिक, वैक्रियिक, आहारक, तैजस, कार्मण, कर्णेन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय, घ्राणेन्द्रिय, रसनेन्द्रिय, स्पर्शनेन्द्रिय, मनोयोग, वचन योग, काय बोग और श्वासोच्छास का ग्रहण कराता है। पुद्गलास्तिकाय महण लक्षण वाला है ।
वर्तनापरिणामक्रियाः परत्वापरत्वे च कालस्य ।
५, २२.
वत्तना लक्खणो कालो० ।
बर्तनालक्षणः कालः ।
छाया
- काल वर्तनालक्षण वाला है।
भाषा टीका
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संगति - सूत्र और आगम के इस पाठ को मिलाने से धर्म और अधर्म द्रव्य की परिभाषाओं की कुंजी खुल जाती है। आगम में विशेष अवश्य है, किन्तु वह जितना की है अत्यन्त आवश्यक है । काल द्रव्य के परिणाम, क्रिया, परत्व और अपरत्व का बर्तन में ही अन्तर्भाव हो जाता है । अतः आगमवाक्य में कालद्रव्य को केवल वर्तना लक्षण में ही समाप्त कर दिया गया है।
उत्तराध्यवन अध्ययन २८ गाथा १०
स्पर्शरसगन्धवर्णवन्तः पुद्गलाः ।
पोगले पंचवणे पंचरसे दुगंधे
५, २३.
फासे पण्णत्ते ।
व्याख्या प्राप्ति शतक १२ उद्दे० ५ सूत्र ४५०.
छाया - पुद्गलः पञ्चवर्णः पञ्चरसः द्विगन्धः अष्टस्पर्शः प्रज्ञप्तः ।
श्छायातपोद्योतवन्तश्च ।
भाषा टीका - पुद्गल में पांच वर्ण, पांच रस, दो गंध और आठ स्पर्श होते हैं।
शब्दबन्धसौक्ष्म्यस्थौल्यसंस्थानभेदतम
५, २४.