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________________ ११४ ] तत्त्वार्थसूत्रजैनाऽऽगमसमन्वयः परतः परतः पूर्वा पूर्वाऽनन्तरा। ४, ३४. दो चेव सागराइं, उक्कोसेण वियाहिआ। सोहम्मम्मि जहन्नणं, एगं च पलिओवमं ॥ २२० ॥ सागरा साहिया दुन्नि, उक्कोसेण वियाहिया । ईसाणम्मि जहन्नणं, साहियं पलिओवमं ॥ २२१ ।। सागराणि य सत्तेव, उक्कोसेणं ठिई भवे । सणंकुमारे जहन्नेणं, दुन्नि ऊ सागरोवमा ॥ २२२ ॥ साहिया सागरा सत्त, उक्कोसेणं ठिई भवे । माहिन्दम्मि जहन्नेणं, साहिया दुन्नि सागरा ॥ २२३ ॥ दस चेव सागराइं, उक्कोसेणं ठिई भवे। बम्भलोए जहन्नणं, सत्त ज सागरोवमा ॥ २२४ ॥ चउदस सागराइं, उक्कोसेण ठिई भवे । लन्तगम्मि जहन्नेणं, दस उ सागरोवमा ॥ २२५ ॥ सत्तरस सागराइं, उक्कोसेण ठिई भवे । महासुक्के जहन्नेणं, चोइस सागरोवमा ॥ २२६ ॥ अट्ठारस सागराइं, उक्कोसेण ठिई भवे । सहस्सारम्मि जहन्नेणं, सत्तरस सागरोवमा ॥ २२७ ॥ सागरा अउणवीसं तु, उक्कोसेणं ठिई भवे । माणयम्मि जहन्नणं, अट्ठारस सागरोवमा ॥ २२८ ॥
SR No.022531
Book TitleTattvartha Sutra Jainagam Samanvay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaram Maharaj, Chandrashekhar Shastri
PublisherLala Shadiram Gokulchand Jouhari
Publication Year1934
Total Pages306
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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