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चतुर्थऽध्यायः
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प्रश्न-प्रमाण काल किसे कहते हैं?
उत्तर-वह दो प्रकार का होता है-दिवस प्रमाण काल और रात्रि प्रमाण काल । इत्यादि।
बहिरवस्थिताः।
४, १५. अंतो मणुस्सखेत्ते हवंति चारोवगा य उववण्णा । पञ्चविहा जोइसिया चंदा सरा गहगणा य ॥ २१ ॥ तेण परं जे सेसा चंदाइच्चगहतारनखत्ता । नत्थि गई नवि चारो अवट्ठिया ते मुणेयव्वा ॥ २२ ॥
जीवाधिगम तृतीय प्रतिपत्ति उद्दे० २ सूत्र १७७ छाया- अन्तः मनुष्यक्षेत्रे भवन्ति चारोपगाश्च उपपन्नाः।
पञ्चविधाः ज्योतिष्काः चन्द्रमसः सूर्याः ग्रहगणाश्च ॥ तेन परं यानि शेषाणि चन्द्रमसादित्यग्रहतारकनक्षत्राणि ।
नास्ति गतिः नापि चारः अवस्थितानि तानि ज्ञातव्यानि ॥ भाषा टीका-मनुष्य क्षेत्र के अन्दर उत्पन्न हुए पांचों प्रकार के ज्योतिष्क चन्द्रमा, सूर्य, और ग्रहों के समूह चलते रहते हैं। किन्तु मनुष्य क्षेत्र के बाहिर के शेष चन्द्रमा, सूर्य, ग्रह, नक्षत्र और तारे गति नहीं करते, न चलते हैं । परन् उनको निश्चल समझना चाहिये।
संगति-इन सब भागम वाक्यों और सूत्र के पदों में विशेष कथन के अतिरिक्त और कुछ भेद नहीं है.
वैमानिकाः। वेमाणिया -
व्याख्याप्रज्ञप्ति० शतक २० सूत्र ६७५-६८२. छाया- वैमानिकाः। भाषा टीका-[ज्योतिष्क देवों से ऊपर रहने वाले देवों को] वैमानिक कहते हैं।