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________________ चतुर्थऽध्याय : [ १०३ भाषा टीका-भवनवासी दस प्रकार के होते हैं-असुरकुमार, नागकुमार, सुपर्णकुमार, विद्युत्कुमार, अग्निकुमार, द्वीपकुमार, उदधिकुमार, दिक्कुमार, वातकुमार, और स्तनित कुमार। व्यन्तराः किन्नरकिम्पुरुषमहोरगगन्धर्वयक्षराक्षसभूतपिशाचाः। ४, ११. वाणमंतरा अट्ठविहा पएणत्ता, तं जहा-किएणरा, किंपुरिसा, महोरगा, गंधव्वा, जक्खा, रक्खसा, भूया, पिसाया। प्रज्ञापना प्रथमपद देवाधिकार. छाया- व्यन्तराः अष्टविधाः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा – किन्नराः, किम्पुरुषाः, महो रगाः, गन्धर्वाः, यक्षाः, राक्षसाः, भूताः, पिशाचाः। भाषा टोका-व्यन्तर आठ प्रकार के होते हैं-किन्नर, किम्पुरुष, महोरग, गन्धर्व, यक्ष, राक्षस, भूत और पिशाच. ज्योतिष्काः सूर्याचन्द्रमसौ ग्रहनक्षत्रप्रकीर्णकतारकाश्च। जोइसिया पंचविहा पण्णता, तं जहा-चंदा, सूरा, गहा, सक्खत्ता, तारा। प्रज्ञापना प्रथम पद देवाधिकार. छाया- ज्योतिष्काः पञ्चविधाः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा- चन्द्रमसः, सूर्याः, ग्रहाः, नक्षत्राणि, तारकाः। भाषा टीका - ज्योतिष्क पांच प्रकार के होते हैं- चंद्रमा, सूर्य, प्रह, नक्षत्र, और तारे ___मेरुप्रदक्षिणा नित्यगतयो नृलोके। ४, १३.
SR No.022531
Book TitleTattvartha Sutra Jainagam Samanvay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaram Maharaj, Chandrashekhar Shastri
PublisherLala Shadiram Gokulchand Jouhari
Publication Year1934
Total Pages306
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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