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________________ ( ६५ ) भावार्थ -- लोकोंको बोध करता है इससे गुरु पूज्यतम है, संपूर्ण पात्रोमें पुराण जाननेवाला श्रेष्ठ है ॥ ५० ॥ पतनसे रक्षा करता है इस लिये पात्र कहलाता है, धन धान्य सुवर्ण और अनेक प्रकारके वस्त्रोंको जो सुपात्रकों देते हैं वे परमगतिको प्राप्त होते हैं, गौ रथ महिषी हाथी सुन्दर अश्वोंको जो श्रेष्ठ ब्राह्मणको देता है उसके पुण्यका हाल सुनो, अक्षयफल और संपुर्ण कामनाओंको पाकर अश्वमेधयज्ञका फल पाता है ॥ ५१-५२-५३ ॥ और जो खेडी हुई अथवा फलवती पृथ्वी देता है वो प्रथमके और पीछे के दश वंशोंको तार देता है ॥ ५४ ॥ इस उपरके लेखको देखकर बुद्धिमान् लोग विचार करेंगे कि जो ब्राह्मण गौ भैंस हाथी घोडा रक्खें ऐसे लोभी ब्राह्मणको श्रेष्ठब्राह्मण कैसे कह सकते हैं ?, क्यों कि लोभ पापका मूल है उस मूलको पोषण करनेवाले शरूसको दान देनेवाला अक्षय फलको कैसे प्राप्त कर सकता है ?, ये श्लोक फक्त भद्रिक लोकोंको भ्रममें डाल कर उनके ज़मीन माल मिलकत आदि पदार्थों को खोस लेनेके लिये बनाये गये हैं ऐसा प्रतीत होता है. शिवपुराण धर्मसंहिता अध्याय २२ वे के अंतमे लिखा है कि - " न यज्ञैस्तुष्टिमायान्ति देवाः प्रेक्षणकैरपि ॥ ५५ ॥ बलिभिः पुष्पपूजाभिर्यथा पुस्तकवाचनैः । विष्णोरायतने यस्तु कारयेद्धर्मपुस्तकम् ।। ५३ ।। शम्भोरकस्य कस्यापि शृणु तस्यापि यत्फलम् । राजसूयाश्वमेधाभ्यां फलं प्राप्नोति मानवः ॥ ५७ ॥ इतिहासपुराणानां पुण्यं पुस्तकवाचनम् ।
SR No.022530
Book TitleMat Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaykamalsuri, Labdhivijay
PublisherMahavir Jain Sabha
Publication Year1921
Total Pages236
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati & Book_Devnagari
File Size17 MB
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