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________________ (६४) तृतीय-दिवस. सरे दिन जगदुपकारी सत्यधर्म प्ररूपक मन वचन और कायामें एकसी स्थितिवाले सौजन्यशाली सूरीश्वरजी अपने प्रातःकालीन सर्वकृत्योंसे निफराम होकर पट्ट पर विराजित हुए हैं इतनेमें वह भाग्यशाली श्रावक कि जिसको सूरीश्वरजी महाराजके कोमल और माधुर्य धर्मपद वचन सुननेका सौभाग्य प्राप्त हुआ है आ चढ़ा, महाराजश्री तथा आपके समस्त परिवारको वंदन करके बैठ गया और आगे के विषयको सुननेकी जिज्ञासा की, परमदयालु सूरीश्वरजी महाराजने फरमाया किशिवपुराण धर्मसंहिता अध्याय २२ श्लोक ५० वें से देखो" सम्बोधयन्ति लोकं तं, तस्मात् पूज्यतमो गुरुः । सर्वेषां चैव पात्राणां, श्रेष्ठः पुराणवित्तमः ॥ ५० ॥ पतनात्रायते यस्मात्, तस्मात्पात्रमुदाहृतम् । धनं धान्यं हिरण्यं च, वासांसि विविधानि च ॥५१॥ ये ददन्ति सुपात्राय, ते यान्ति परमां गतिम् । गां रथं महिषीं चैव, गजानचाँश्च शोभनान् । ॥५२॥ यः प्रयच्छति मुख्याय, तस्य पुण्यफलं शृणु । अक्षयं सर्वकामीयं, सोऽश्वमेधफलं लभेत् ॥ ५३ ॥ महीं ददाति यस्तस्मै, कृष्टां फलवती शुभाम् । स तारयति वै वंशान दश पूर्वान् ; दश परान् ॥ ५४॥"
SR No.022530
Book TitleMat Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaykamalsuri, Labdhivijay
PublisherMahavir Jain Sabha
Publication Year1921
Total Pages236
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati & Book_Devnagari
File Size17 MB
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