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________________ हुई वो स्वर्णयष्टि भी कुमारको दो. मंत्रीने उत्तर दिया. महाराजा ! वो तो महादुर्लभ गहिने हैं, आपने भी आपकी उम्रमें नहीं पहिने वो कैसे दिये जावे ?, याचक लोग बड़े लुच्चे हैं और कुमार भोला हैं; एकदम कह देगें कि कुमार साहिब ! ये गहिने तो लोहे के हैं, तब कुमार तुर्त उतार कर दे देंगे। इस लिये ऐसे अपूर्व गहिने नहीं दिये जायेंगे. अब कहना ही क्या था ?. उसी वख्त कुंवरने कहा कि--मंत्रिजो ! मेरेको वो ही गहिने दो जो बडी मुद्दतसे किप्तीने नहीं पहिने. मैं ऐसा भोला नहीं हूं जो लुच्चोंकी वातको सत्य मानूं. आप जल्दी मुझे वो गहिने पहिना दो और उस हीरेकी जडी हुई स्वर्णयष्टिसे मेरे हाथको सुशोभित बना दो; मैं उन अपूर्व गहिनोंको अपने अंगसे कभी भी अलग नहीं करूंगा. मंत्री कहने लगा-कुमार ! देखना ! उसमें गरबड न हो. नहीं जी नहीं कभी गरबड नहीं होगी. बस-उसी वख्त मंत्रीने रातको तैय्यार कराये हुए लोहेके आभूषण पहिना दिये और लोहेकी यष्टि हाथमें दी. बादमें कुमारने भोजन किया. जब सेरको निकले तर अंधकुमार तो मानता है कि, मैंने आज अद्वितीय आभूषण प्राप्त किया है। मगर याचकोंके चहेंरे कुमारको देखते ही फीके पड गये और कहने लगे क्योंजी ! आज लोहे के गहिने पहिने हैं?. नज़दीकमें जा कर फिर कहने लगे; क्या ऐसे गहिने पहिन आपकी शोभा है?. अभी ये अक्षर तो पूरे याचसके मुंहसे निकलने पाये ही नहीं थे कि, एकदम लोहेकी सोती याचकके शिर पर धडाक देकर पडी और लोहुंकी धारा छुटी; याचक राड़ पाड़ कर ज़मीन पर गिर पड़ा. ऐसे दो चार याचकोंकी उस दिन दुर्दशा हुई.
SR No.022530
Book TitleMat Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaykamalsuri, Labdhivijay
PublisherMahavir Jain Sabha
Publication Year1921
Total Pages236
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati & Book_Devnagari
File Size17 MB
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