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________________ (१२९) दिनमें बदन परके सब गहिने उतार कर देता था. याचकोंका बज़ार दिन ब दिन गरम हो गया. दूसरे दिन जब राजा कुमारको भोजनके लिये कहता तब कुमार कह देता था कि, मुझे गहिने पहिनाओ फिर जिमुंगा. राजाका पाणसे भी अधिक प्रिय पुत्र था, अतः जो कुछ कहता था राजाको करना पडता था. इस तरह रोज़ नये गहिने पहिनने और दूसरे दिन दानमें खतम कर देने मंत्रीको नागवार गुजरा. उसने राजासे एकान्तमें कहा कि, इस तरह काम किस तरहसे चल सकेगा ?, ऐसे तो खजाना ही खाली हो जायगा और भीख मांगनेका समय आ जायगा. उस राजाने कहा, भीख मांगना बेहेतर है मगर मैं कुँवरको नाराज नहीं कर सकता. मंत्रीने कहा-भला ! कुंवर भी खुश रहे और गहिने भी बचे रहे तब तो मंजुर है न ?. राजाने कहा-हां, फिर क्या हरकत है?. ___ मंत्री-मैं कलरोज़ उसके भोजनके समय आऊंगा और वो गहिने माँगे उस समय आपने मुझसे अमुक शब्द कहने, फिर देखना सब ही ठीक हो जायगा. मंत्रीने रात ही रातमें लोहेके गहिने और एक छडी तैय्यार करा दिए. दूसरे दिन टाईम पर मंत्री रानभवनमें चला गया. उस समय राजा पुत्रको खानेके लिये आग्रह कर रहा था और पुत्र गहिने माँग रहा था. प्रत्युत्तरमें राजा कहता था कि, आज गहिने तैय्यार नहीं हो सके हैं, तब लड़का कहता है मैंने खाना ही नहीं. राजा मंत्रीको कहता है कि, मंत्रीजी ! वे गहिने जो खजानेमें सेंकडो वर्षोंसे गूंके यूं पडे है. शायद हमार किसी पुण्यशाली (?) पूर्वजने ही पहिने होंगे, दूसरे तैय्यार नहीं है तो आज कुमारको वो ही पहिना दो और हीरेसे जड़ी
SR No.022530
Book TitleMat Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaykamalsuri, Labdhivijay
PublisherMahavir Jain Sabha
Publication Year1921
Total Pages236
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati & Book_Devnagari
File Size17 MB
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