________________
268 Studies in Umāsvāti
___ यह गाथा प्रवचनसार 3.17 में भी मिलती है जो कि कुन्दकुन्दकृत प्रसिद्ध गाथाओं में से एक है। यही गाथा तत्त्वार्थवार्तिक में 7.13.12 पर "उक्तं च" करके उद्धृत मिलती है।
___ कुछ विद्वानों का अनुमान है कि यह गाथा द्वादशारनयचक्र के टीकाकार सिंहसूरि कृत है, परन्तु उसमें अभी तक मिल नहीं सकी है।
विद्वद्गण अपनी-अपनी शोध-खोज या मान्यता के अनुसार कुन्दकुन्द का स्थितिकाल ईसापूर्व प्रथम शती से ईसवीय आठवीं शती तक स्वीकृत करते हैं।
और यदि देवनन्दि (635-680) अपनी रचना सर्वार्थसिद्धिवृत्ति में कुन्दकुन्द कृत साहित्य से उद्धरण देते हुए पाये जाते हैं, तब कम से कम कुन्दकुन्द सर्वार्थसिद्धि के बाद कैसे ठहरेंगे?
प्रो. बंशीधर भट्ट, प्रो. चन्द्रभाल त्रिपाठी आदि मनीषियों की यह भी मान्यता है कि सर्वार्थसिद्धि में उद्धृत और विशेषतः कुन्दकुन्द विरचित ग्रन्थों में मिलने वाली गाथाएँ स्वयं सर्वार्थसिद्धिकार के द्वारा उद्धरित नहीं हैं, अपितु उन्हें बाद में जोड़ा गया है। इस मान्यता के समर्थन में उक्त विद्वानों की कौन-कौन सी युक्तियाँ हैं, यह मुझे मूल रूप से देखने को नहीं मिल सका। इस मान्यता का उल्लेख मैंने प्रो. एम. ए. ढांकी से हुई चर्चा के आधार पर किया है।
उक्त मान्यता को दृष्टि में रखकर जब मैंने सर्वार्थसिद्धिगत ऐसे सभी उद्धरणों को ध्यानपूर्वक देखा तो पाया - 1. सर्वार्थसिद्धि में जो गाथाएँ या अन्य उद्धरण दिये गये हैं, वे प्रसंग या सन्दर्भ
की माँग रहे हैं। 2. विशेष रूप से कुन्दकुन्दकृत साहित्य के रूप में प्रसिद्ध ग्रन्थों की जो
गाथाएँ सर्वार्थसिद्धि में उद्धृत मिलती हैं, उनमें की अधिकांश गाथाएँ उनके उत्तरवर्ती व्याख्याकार अकलंकदेव कृत तत्त्वार्थवार्तिक में यथास्थान उद्धृत
मिल जाती हैं। 3. अब यह तो माना नहीं जा सकता कि तत्त्वार्थवार्तिक के आधार पर
सर्वार्थसिद्धि के लिपिकारों या सम्पादकों ने उन्हें उद्धृत कर दिया है, क्योंकि
ऐसा कहने के लिए कोई प्रमाण नहीं है। 4. जहाँ तक सर्वार्थसिद्धि की हस्तलिखित प्रतियों का प्रश्न है, तो भारतीय
ज्ञानपीठ से प्रकाशित सर्वार्थसिद्धि के परिशिष्ट- 4 में उद्धृत वाक्यसूची देते समय सम्पादक पं. फूलचंद शास्त्री ने स्पष्ट लिखा है- "सर्वार्थसिद्धि में