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तत्त्वार्थसूत्र की पूज्यपाद देवनदिकृत सर्वार्थसिद्धिवृत्ति में उद्धरण 267 का एक चरण प्रतीत होता है।
सूत्रसंख्या 7.13 की वृत्ति में ही 'उक्तं च' करके दो गाथाएँ उद्धृत की गई हैं
'उच्चालिदम्हि पादे इरियासमिदस्स णिग्गमट्ठाणे। आवादे (धे) ज्ज कुलिंगो मरेज्ज तज्जोगमासेज्ज। ण हि तस्स तण्णिमित्तो बंधो सुहुमो वि देसिदो समए। मुच्छापरिग्गहो ति य अज्झप्पपमाणदो भणिदो।।' 7.13.687
इसी तरह की दो गाथाएँ प्रवचनसार, क्षेत्र 3, 16-17 पर मिलती हैं। प्रवचनसार (3-18) की जयसेन कृत वृत्ति में भी, ये दोनों गाथाएँ युगल रूप से उद्धृत की गई हैं।
उक्त दोनों गाथाएँ किंचित् पाठभेद के साथ सावयपन्नत्ती (श्रावकप्रज्ञप्ति) में पायी जाती हैं। यहाँ पर इनकी क्रमसंख्या 232 एवं 224 है
उच्चालियंमि पाए इरियासमियस्स संकमट्ठाए। वावज्जिज्ज कुलिंगी मरिज्ज तं जोगमासज्ज। न य तस्स तन्निमित्तो बंधो सुहुमो वि देसिओ समए। जम्हा सो अपमत्तो स उ पमाउ ति निछट्ठा।।
सावयपन्नत्ती सटीक उपलब्ध होती है। सावयपन्नत्ती किस की रचना है, इस विषय में मतभेद पाया जाता है और दोनों ही प्रकार के साधक प्रमाण उपलब्ध होते हैं। कुछ लोग इसे उमास्वातिकृत रचना मानते हैं, और हरिभद्रसूरि को मात्र टीकाकार। लेकिन कुछ लोगों की मान्यता है कि टीका तो हरिभद्र कृत है ही, मूल के कर्ता भी हरिभद्र सूरि ही हैं।
उच्चालियम्हि पाए इरिया समिदस्स णिग्गमत्थाए। आवाधेज्ज कुलिंग मरिज्ज तं जोगमासेज्ज।। ण हि तस्स तण्णिमित्तो बंधो सहमो य देसिदो समये। मुच्छापरिग्गहो च्चिय अज्झप्पपमाणदो दिट्ठो।। जुम्म।। स. सि. वृ. 7.13.687 पर "उक्तं च" करके एक गाथा दी गई हैमरदु व जियदु व जीवो अयदाचारस्स णिच्छिदा हिंसा। पयदस्स णत्थि बंधो हिंसामित्तेण समिदस्स।।