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240 Studies in Umāsvāti शेष पांच द्रव्यों को अस्तिकाय कहा गया है तथा छह द्रव्यों में से 'जीव' को छोड़कर शेष पाँच को अकर्ता माना गया है। (iv) गतिस्थित्युपग्रहो धर्माधर्मयोरुपकारः। -तत्त्वार्थसूत्र, 5.17
आकाशस्यावगाहः। - तत्त्वार्थसूत्र, 5.18 धर्मो गतिस्थितिमतां द्रव्याणां गत्युपग्रहविधाता।
स्थित्युपकृच्चाधर्मोऽवकाशदानोपकृद् गगनम्।। - प्रशमरतिप्रकरण, 215 उपर्युक्त दोनों कथनों में पूर्ण समानता है, जिसके अनुसार धर्म को गति, अधर्म को स्थिति एवं आकाश को अवगाहन में उपकारक प्रतिपादित किया गया है। (v) स्पर्शरसगन्धवर्णवन्तः पुद्गलाः। -तत्त्वार्थसूत्र, 5.23 शब्दबन्धसौक्ष्म्यस्थौल्यसंस्थानभेदतमश्छायातपोद्योतवन्तश्च।
- तत्त्वार्थसूत्र, 5.24 स्पर्शरसगन्धवर्णाः शब्दो बन्धश्च सूक्ष्मता स्थौल्यम्।
संस्थानं भेदतमश्छायोद्योतातपश्चेति। -प्रशमरतिप्रकरण, 216 पुद्गल के लक्षण से सम्बद्ध उपर्युक्त दो सूत्रों एवं कारिका में पूर्ण साम्य है। मात्र उद्योत एवं आतप के क्रम में भिन्नता है। (vi) शरीरवाङ्मनः प्राणापानाः पुद्गलानाम्। –तत्त्वार्थसूत्र, 5.19
सुखदुःखजीवितमरणोपग्रहाश्च। –तत्त्वार्थसूत्र, 5.20 कर्मशरीरमनोवाग्विचेष्टितोच्छ्वासदुःखसुखदा:स्युः।
जीवितमरणोपग्रहकराश्च संसारिणः स्कन्धाः।। - प्रशमरतिप्रकरण, 217 शरीर, वाक्, मन, उच्छ्वास (प्राणापान), सुख, दुःख, जीवन, मरण- ये सब संसारी जीव पर पुद्गल के उपकार हैं। यहाँ दोनों ग्रन्थों का समान प्रतिपादन है। (vii) वर्तना परिणामः क्रिया परत्वापरत्वे च कालस्य। -तत्त्वार्थसूत्र, 5.22
परिणामवर्तनाविधिः परापरत्वगुणलक्षणः कालः। - प्रशमरतिप्रकरण, 218 काल के कार्य एवं लक्षण पर वैशेषिक सूत्र का प्रभाव परिलक्षित होता है। (viii) उत्पादव्ययध्रौव्ययुक्तं सत्। -तत्त्वार्थसूत्र, 5.29
अर्पितानर्पितसिद्धः। –तत्त्वार्थसूत्र, 5.31