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________________ 228 Studies in Umāsvāti 4. सम्मत्तुप्पा सावय, विरए संयोजणाविणासे य। दंसणमोहक्खवगे, कसाय उवसामगुवसंते।। खवगे य खीणमोहे, जिणे य दुविहे हवे असंखगुणा। उदयो तव्विवरीओ, कालो संखेज्जगुणसेढी।। - कर्मप्रकृति (उदयकरण), गा. 394-51 5. सम्मत्तदेससंपुनविरइउप्पत्ति अणविसंजोगे। दसणखव मोहस्स, समणे उवसंत खवगे य॥ खीणाइतिगे अस्संखगुणियसेढिदलिय जहकमसो सम्मत्ताईणेक्कारसण्ह कालो उ संखंसे।। -पंचसंग्रह, बन्धद्वार, गा. 114-15। 6. सम्मदरसव्वविरई अणविसंजोयदंसखवगे या मोहसमसंतखवगे, खीण सजो गुणसेढी।। - कर्मग्रन्थ, शतक पंचम, गा. 82। 7. मिच्छादो सद्दिट्ठी, असंखगणकम्मणिज्जरा होदि। तत्तो अणुवयधारी तत्तो य महव्वई णाणी। पढमकसायचउण्ह, विजोजओ तह य खवणसीलो य। दंसणमोहतियस्स य तत्तो उवसमग चत्तारि।। खवगो य खीणमोहो, सजोइ णाहो तहा अजोईया। एदे उवरिं, असंखगुणकम्मणिज्जरया।। - कार्तिकेयानुप्रेक्षा, 9/106-8। 8. (क) सम्मत्तुप्पत्ती वि य सावय विरदे अणंतकम्मसे। दसणमोहक्खवए, कसाय उवसामए य उवसंते।। खवए य खीणमोहे, जिणे य णियमा भवे असंखेज्जा। तव्विवरीदो कालो, असंखेज्जगुणा य सेढीओ।। - षट्खण्डागम, वेदनाखण्ड, गा. 7-8, पृ. 627। (ख) गोम्मटसार, जीवकाण्ड, गा. 66-7। 9. कार्तिकेयानुप्रेक्षा, पृ. 521 10. वही, 9/1061 11. आचारांग टीका, पृ. 118। 12. तव्विवरीतो काले, संखेज्जगुणाए सेढीए।। - आवश्यक नियुक्ति, 223 । 13. आचारांग टीका, पृ. 118। 14. जैन, सागरमल, गुणस्थान सिद्धान्त का उद्भव और विकास, वाराणसी। 15. यहां मोह के स्थान पर कषाय शब्द का प्रयोग हुआ है।
SR No.022529
Book TitleStudies In Umasvati And His Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorG C Tripathi, Ashokkumar Singh
PublisherBhogilal Laherchand Institute of Indology
Publication Year2016
Total Pages300
LanguageEnglish, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_English & Book_Devnagari
File Size23 MB
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