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________________ जैन आगम-परम्परा एवं निगम-परम्परा में अन्तःसम्बन्ध 477 उसके अंगो से उत्पन्न होने के कारण ब्राह्मण कहे जायेंगे। यदि ब्रह्म मात्र मुखप्रदेश पर ब्राह्मण है तो उसके शरीर के अन्य अंग शूद्र होने से ब्रह्म के चरणों में ब्राह्मणों को अपना सिर नहीं झुकाना चाहिए।33 नैगमिक आगमों का जैन उत्तरवर्ती साहित्य पर प्रभाव शैवागमों, वैष्णवागमों, शाक्तागमों अथवा तन्त्रागमों का प्रभाव जैन उत्तरवर्ती साहित्य पर भी दृष्टिगोचर होता है। जैन स्तोत्र-साहित्य हो अथवा तन्त्र, मन्त्र एवं यन्त्र से सम्बद्ध साहित्य, सर्वत्र अन्य नैगमिक आगमों अथवा स्वतन्त्र तन्त्रागमों का प्रभाव दिखाई देता है । जैन स्तोत्र-साहित्य में जैन परम्परा के शब्दों के प्रयोग के साथ शिव, विष्णु, ब्रह्म आदि के पर्यायवाची शब्दों का भी भरपूर प्रयोग हुआ है। हाँ, यह अवश्य है कि जैन स्तोत्रकार आदिनाथ की शिव शब्द से स्तुति करते हुए भी उन्हें बाह्य शक्ति से युक्त प्रतिपादित नहीं करते हैं, वे उसे कल्याणकारी, मंगलकारी अर्थ में ही ग्रहण करते हैं। यहाँ तीर्थङ्कर के विशेषण रूप में प्रयुक्त वैदिक शब्दों तथा तन्त्र, मन्त्र एवं यन्त्र साहित्य से सम्बद्ध चर्चा की जाएगी। तीर्थकर के विशेषण: वैदिक-परम्परा के शब्द प्राकृतभाषा में जहाँ तीर्थङ्करों को लोक का उद्द्योतकर, धर्मतीर्थ का प्रवर्तक, स्वयंसम्बुद्ध, पुरुषोतम, पुरुषसिंह, लोकोत्तम, लोकनाथ, लोकहित, लोकप्रदीप, अभयदाता, चक्षुदाता, मार्गप्रदाता, शरणदाता आदि विशेषणों से व्याख्यायित किया गया है वहाँ आगे चलकर संस्कृत स्तोत्रों में उनके साथ वे सारे विशेषण प्रयुक्त हुए हैं जो ब्रह्मा, विष्णु एवं महेश के साथ प्रयुक्त हुए हैं। विष्णुसहस्रनाम स्तोत्र की तर्ज पर 'जिनसहस्रनाम स्तोत्र' की भी रचना हुई है। पूज्यपाद देवनन्दी समाधितन्त्र में तीर्थकर के विशेषणों का प्रयोग करते हुए कहते हैं निर्मलः केवलःशुद्धोविविक्तः प्रभुरव्ययः । परमेष्ठी परात्मेति, परमात्मेश्वरो जिनः ।। जयन्ती यस्यावदतोऽपि भारती, विभूतयस्तीर्थकृतोऽप्यनीहितुः। शिवाय धात्रे सुगताय विष्णवे, जिनाय तस्मै सकलात्मने नमः ।। इन श्लोकों में प्रयुक्त अव्यय, परात्मा, ईश्वर, शिव, धाता, विष्णु, सकलात्मा
SR No.022522
Book TitleJain Dharm Darshan Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2015
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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