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जैन धर्म-दर्शन : एक अनुशीलन
5. श्री विष्णुपुराण, प्रथम भाग, गीता प्रेस, गोरखपुर, 1956, प्रथम अंश, सृष्टिप्रक्रिया, पृष्ठ 9 6. भगवद्गीता, गीताप्रेस, गोरखपुर, 11.32
7. श्वेताश्वतरोपनिषद्, ईशादि नौ उपनिषद्, गीता प्रेस, गोरखपुर, 2002, प्रथम अध्याय,
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मन्त्र 2
8. वैशेषिक सूत्र, ओरियण्टल इंस्टीट्यूट, बड़ौदा, 1982, अध्याय 1, आहूनिक 1, सूत्र 4 9. (1) अपरस्मिन्नपरं युगपच्चिरं क्षिप्रमिति काललिङ्गानि । - वैशेषिकसूत्र, अध्याय 2,
आहूह्निक 2, सूत्र 6,
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(2) कालः परापरव्यतिकरयौगपद्यचिरक्षिप्रप्रत्ययलिङ्गम् । प्रशस्तपादभाष्य, सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय, वाराणसी, द्रव्यनिरूपण
10. तस्य गुणाः संख्यापरिमाणपृथक्त्वसंयोगविभागाः। - प्रशस्तपादभाष्य, पूर्वोक्त
11. वैशेषिक सूत्र, 5.2.26
12. न्यायसूत्र, चौखम्बा संस्कृत संस्थान, वाराणसी, 1.1.16
13. दिग्देशकालाकाशेष्वप्येवं प्रसंगः। - न्यायसूत्र, 2.1.23
14. दिक्कालावाकाशादिभ्यः। - सांख्यप्रवचनभाष्य, द्वितीय अध्याय, सूत्र 12
15. सांख्यकारिका में 9 तुष्टियों में चार आध्यात्मिक तुष्टियाँ हैं- प्रकृति, उपादान, काल और भाग्य। इनके अतिरिक्त पाँच तुष्टियाँ शब्दादि पाँच बाह्य विषयों से विरत होने पर प्राप्त होती हैं।
16. योगभाष्य, योगसूत्र, 3.52 पर, भारतीय विद्या प्रकाशन, वाराणसी, 1997
17. योगवार्तिक, योगसूत्र, 3.52 पर, भारतीय विद्या प्रकाशन, वाराणसी, 1997
18. नास्माकं वैशेषिकादिवदप्रत्यक्षः कालः, किन्तु प्रत्यक्ष एव, अस्मिन्क्षणे मयोपलब्ध इत्यनुभवात् । अरूपस्याप्याकाशवत् प्रत्यक्षत्वं भविष्यति 1- शास्त्रदीपिका (युक्तिस्नेहपूरणीसिद्धान्त चन्द्रिकाटीका ) - अध्याय 5, पाद 1, अधिकरण 5, सूत्र 5, दर्शन अने चिन्तन, पृ. 1027 पर उद्धृत
19. अतीन्द्रियत्वेन कार्यानुमेयत्वेन च।
प्रस्थानरत्नाकर, पुरुषोत्तम गोस्वामी, श्री वल्लभ विद्यापीठ, कोल्हापुर, तृतीय संस्करण, विक्रम संवत् 2056, पृ. 202 20. वाक्यपदीय, कालसमुद्देश कारिका 2 पर हेलाराजकृत प्रकाशव्याख्या 21. तत्त्वार्थसूत्र, पार्श्वनाथ विद्यापीठ, वाराणसी, तृतीय संस्करण, 1993, 5.38
22. (क) धम्मो अहम्मो आगासं, कालो पुग्गलजंतवो
एस लोगो त्ति पण्णतो, जिणेहिं वरदंसीहिं । । - उत्तराध्ययन सूत्र, 28.7
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