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________________ 416 जैन धर्म-दर्शन : एक अनुशीलन स्मृति, प्रत्यभिज्ञान, तर्क एवं अनुमान को परोक्ष प्रमाण के पृथक भेदों में निरूपित करने का मार्ग खोल दिया। भट्ट अकलङ्क ने मति के पर्यायार्थक ‘स्मृति' शब्द से स्मृति प्रमाण का, 'संज्ञा' शब्द से प्रत्यभिज्ञान प्रमाण का, 'चिन्ता' शब्द से तर्क प्रमाण का एवं अभिनिबोध शब्द से अनुमानप्रमाण का विकास किया । (बौद्ध प्रमाणमीमांसा की जैनदृष्टि से समीक्षा, पृ. 293-294) __(7) षड् लेश्या- तत्त्वार्थसूत्र में षड्लेश्याओं (कृष्ण, नील, कापोत, तेजो, पद्म और शुक्ल) का कथन औदयिक भाव के 21 भेदों के अन्तर्गत आया है। इसके अतिरिक्त तृतीय अध्याय में सात नरकों में अशुभतर लेश्याओं के प्रसंग में और चतुर्थ अध्याय में देवों के प्रसंग में विभिन्न लेश्याओं का कथन हुआ है (सूत्र-3.3, 4.2, 4.7, 4.21, 4.23 ) निर्ग्रन्थों के विवेचन में नवम अध्याय (9.49) में भी लेश्या शब्द का प्रयोग हुआ है। किन्तु तत्त्वार्थसूत्र में यह कहीं भी उल्लेख नहीं है कि ये लेश्याएँ कर्मबन्ध में भी सहायक हैं। प्रशमरतिप्रकरण में लेश्या के सम्बन्ध में स्पष्ट कथन है कि कर्म के स्थितिबन्ध में लेश्या विशेष से विशेषता आती है। ये छह लेश्याएँ कौनसी हैं तथा वे कर्मबन्धन में किस प्रकार सहायक हैं, इसका वर्णन करते हुए उमास्वाति कहते हैं ताः कृष्णनीलकापोततैजसीपद्मशुक्लनामानः । श्लेष इव वर्णबन्धस्य कर्मबन्धस्थितिविधात्र्यः ॥ - कारिका, 38 कृष्ण,नील, कापोत, तेजस, पद्म और शुक्ल नामक लेश्याएँ कर्मबन्ध की स्थिति में उसी प्रकार सहायक हैं, जिस प्रकार रंग को दृढ़ करने में श्लेष सहायक है। इस अध्ययन से विदित होता है कि प्रशमरतिप्रकरण एक महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ है, तथापि इसे वह महत्त्व प्राप्त नहीं हुआ, जो तत्त्वार्थसूत्र को प्राप्त है । इसके अनेक सम्भव कारणों में से कुछ इस प्रकार हैं- (1) 'प्रशमरति' आगमिक प्रकरण ग्रन्थ है, इसमें दार्शनिक तत्त्व नगण्य हैं, जबकि तत्त्वार्थसूत्र जैनदर्शन का प्रतिनिधि ग्रन्थ रहा, अतः दार्शनिकयुग में टीका के लिए वही आधारभूत ग्रन्थ माना गया । (2) प्रशमरतिप्रकरण में श्रमण के लिए वस्त्र की एषणा का भी उल्लेख हुआ है, जो दिगम्बरों को स्वीकार्य नहीं था, अतः दिगम्बराचार्यों ने इस पर टीका करना उचित
SR No.022522
Book TitleJain Dharm Darshan Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2015
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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