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________________ उमास्वातिकृत प्रशमरतिप्रकरण एवं उसकी तत्त्वार्थसूत्र से तुलना 401 प्रशमरतिप्रकरण की उपर्युक्त कारिकाओं में भी इन्हीं पाँच भावों के नामों एवं भेदों का समानरूपेण उल्लेख है, मात्र क्रम भिन्न हो गया है। पाँच भावों एवं उनके भेदों की समानता के अतिरिक्त प्रशमरति में सान्निपातिक नामक षष्ठ भाव का भी उल्लेख हुआ है। उसके 15 भेद कहे गए हैं षष्ठश्चसान्निपातिक इत्यन्यपंचदशभेदः। - प्रशमरतिप्रकरण, 197 (ii) उपयोगोलक्षणम् ।- तत्त्वार्थसूत्र, 2.8 सामान्यंखलुलक्षणमुपयोगोभवतिसर्वजीवानाम्। - प्रशमरति, 194 जीव का लक्षण उपयोग है, यह तथ्य उभयत्र समान शब्दावली में अभिहित है। (iii) सद्विविधोऽष्टचतुर्भदः । तत्त्वार्थसूत्र, 2.9 साकारोऽनाकारश्चसोऽष्टभेदश्चतुर्धा तु। -प्रशमरतिप्रकरण, 194 वह उपयोग दो प्रकार का है- साकार(ज्ञान) एवं अनाकार (दर्शन) । इनमें प्रथम साकार उपयोग आठ प्रकार का एवं अनाकार उपयोग चार प्रकार का है। (iv) संसारिणो मुक्ताश्च । तत्त्वार्थसूत्र, 2.10 जीवाः मुक्ता संसारिणश्चसंसारिणस्त्वनेकविधाः। -प्रशमरति, 190 जीव संसारी एवं मुक्त के भेद से दो प्रकार के हैं। इनके उपभेदों में भी दोनों ग्रन्थों में पर्याप्त साम्य है। (v) एकसमयोऽविग्रहः।- तत्त्वार्थसूत्र, 2.30 समयेनैकेनाऽविग्रहेणगत्वोर्ध्वमप्रतिघः। - प्रशमरतिप्रकरण, 287 अध्याय-5 (i) संख्येयाऽसंख्येयाश्च पुद्गलानाम्। - तत्त्वार्थसूत्र, 5.10 नाणोः। - तत्त्वार्थसूत्र, 5.11 द्वयादिप्रदेशवन्तोयावदनन्तप्रदेशकाः स्कन्धाः । परमाणुरप्रदेशोवर्णादिगुणेषुभजनीयः॥ - प्रशमरतिप्रकरण, 208 प्रशमरति के अनुसार पुद्गल स्कन्धों में दो से लेकर अनन्त प्रदेश होते हैं, परमाणु में कोई प्रदेश नहीं होता। इस तथ्य को तत्त्वार्थसूत्र में इस प्रकार प्रकट किया गया है कि पुद्गल में संख्येय, असंख्येय एवं अनन्त प्रदेश होते हैं, जबकि अणु में कोई प्रदेश नहीं होता।
SR No.022522
Book TitleJain Dharm Darshan Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2015
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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