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________________ 295 अहिंसा का समाज दर्शन मित्र | हिंसा प्राणि- समाज के लिए घातक है तो अहिंसा उसके लिए जीवनदायिनी है। हम यह सोचें कि जिस प्रकार दूसरों के द्वारा की गई हिंसा हमें अप्रिय लगती है उसी प्रकार अन्य जीवों को भी लगती है, अतः उसे छोड़ दें। आज विश्व शान्ति एवं सामाजिक बन्धुभाव के लिए हिंसा के ज़हर को उतारकर अहिंसा का अमृत पीने व पिलाने की आवश्यकता है। प्राणिजगत् के सहअस्तित्व, पर्यावरण-संरक्षण, शांति और पारस्परिक सौहार्द के लिए अहिंसा अत्यन्त आवश्यक है । अहिंसा के बिना परिवार और समाज की परिकल्पना नहीं की जा सकती। हिंसा जहाँ वैर को उत्पन्न करती है और उसे निरन्तर बढ़ाती है वहाँ अहिंसा परस्पर मैत्री और सहयोग की भावना को पुष्ट करती है, जिससे समाज में सामंजस्य स्थापित होता है ।
SR No.022522
Book TitleJain Dharm Darshan Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2015
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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