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________________ आचारांग सूत्र में अप्रमत्त जीवन की प्रेरणा 283 No o सन्दर्भ:1. आचारांगसूत्र, आगम प्रकाशन समिति, ब्यावर, 2010, प्रथम श्रुतस्कन्ध, अध्ययन 2, उद्देशक 1, सूत्र 63 2. आचारांगसूत्र, प्रथम श्रुतस्कन्ध, 2.1.63 3. आचारांगसूत्र, प्रथम श्रुतस्कन्ध, 2.1.66 4. आचारांगसूत्र, प्रथम श्रुतस्कन्ध, 2.1.68 __ आचारांगसूत्र, प्रथम श्रुतस्कन्ध, 3.1.108 __ आचारांगसूत्र, प्रथम श्रुतस्कन्ध, 2.5.94 आचारांगसूत्र, प्रथम श्रुतस्कन्ध, 5.1.151 उत्तराध्ययनसूत्र, 4.5 दुहतो जीवियस्स परिवंदण-माणण-पूयणाए जंसि एगे पमादेति-आचारांगसूत्र, प्रथम श्रुतस्कन्ध, 3.3.127 10. 'मा मे केइ अदक्खु' अण्णाण पमाददोसेणं-आचारांगसूत्र, प्रथम श्रुतस्कन्ध 5.1.151 11. मायी-पमायी पुणरेति गब्मा-आचारांगसूत्र, प्रथम श्रुतस्कन्ध, 3.1.108 12. तत्त्वार्थसूत्र, 7.8 13. सूत्रकृतांग सूत्र, 1.8.3 14. आचारांगसूत्र, प्रथम श्रुतस्कन्ध, 3.4.129 15. आचारांगसूत्र, प्रथम श्रुतस्कन्ध, 5.2.152 16. आचारांगसूत्र, प्रथम श्रुतस्कन्ध, 5.4.163 17. आचारांगसूत्र, प्रथम श्रुतस्कन्ध, 3.1.106 18. उत्तराध्ययन सूत्र, अध्ययन, 10 19. आचारांगसूत्र, प्रथम श्रुतस्कन्ध, 2.1.65 20. आचारांगसूत्र, प्रथम श्रुतस्कन्ध, 5.2.156 21. आचारांगसूत्र, प्रथम श्रुतस्कन्ध, 2.1.65 22. आचारांगसूत्र, प्रथम श्रुतस्कन्ध, 4.2.134 23. आचारांगसूत्र, प्रथम श्रुतस्कन्ध, 3.2.117 24. आचारांगसूत्र, प्रथम श्रुतस्कन्ध, 3.3.127 25. आचारांगसूत्र, प्रथम श्रुतस्कन्ध, 3.3.123
SR No.022522
Book TitleJain Dharm Darshan Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2015
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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