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________________ जैन धर्म-दर्शन : एक अनुशीलन 72 73 वचन एवं काया की प्रवृत्ति के लिए हुआ है। यह योग शुभ एवं अशुभ दोनों प्रकार का सम्भव है। पतंजलि के योगसूत्र में योग शब्द चित्तवृत्ति के निरोध के लिए प्रयुक्त हुआ है । ” हरिभद्र, हेमचन्द्र, शुभचन्द्र आदि के साहित्य में योग शब्द का प्रयोग मोक्ष से जोड़ने वाली प्रवृत्ति के लिए भी हुआ है, " किन्तु इसि भासियाइं के महाकाश्यप अध्ययन में 'जुत्तजोगिस्स' शब्द प्रयुक्त हुआ है, जो 'युक्तयोगी' का वाचक है। वहा कहा गया है कि धीमान् युक्तयोगी के पापकर्म क्षय हो जाते हैं तथा आंशिक रूप से कर्म का क्षय होने पर अनेकविध ऋद्धियाँ प्रकट होती हैं। " योगसूत्र के विभूतिपाद में जिस प्रकार विभिन्न सिद्धियों या लब्धियों का कथन है कुछ-कुछ उसी प्रकार का कथन महाकाश्यप अध्ययन में भी हुआ है। महाकाश्यप अध्ययन में कहा गया है कि तपसंयम से युक्त आत्मा कर्म का विमर्दन (नाश) करके विद्यालब्धि, औषधिलब्धि, निपानलब्धि, वास्तुविद्या, शिक्षापद, गति - आगति (पूर्वजन्म तथा पुनर्जन्म) आदि का ज्ञान कर लेती है । " 74 75 270 साधक को इन ऋद्धियों या लब्धियों की प्राप्ति में नहीं अटकना चाहिए। जिस प्रकार विवेकशील व्यक्ति मिश्रित फूलों के ढेर में से विषपुष्पों को अलग कर अन्य फूलों को ग्रहण कर लेता है, उसी प्रकार योगों से युक्तात्मा पापकारी एवं बंधनकारी लब्धियों का त्याग कर दुःख का क्षय कर देता है । ज्ञानमीमांसा अध्यात्म-प्रधान ग्रन्थों में ज्ञान का महत्त्व निर्विवाद रूप से प्रतिष्ठित रहता है। अतः विदु अध्ययन में कहा गया है कि वह विद्या महाविद्या है एवं सर्वविद्याओं में उत्तम है जिसे साधकर साधक सब दुःखों से मुक्त हो जाता है।" विदु ऋषि कहते हैं कि जिस विद्या से व्यक्ति बन्ध, मोक्ष और जीवों की गति - आगति तथा आत्मभाव को जानता है, वह विद्या दुःख विमोचनी है। ” दुःखों से मुक्ति के लिए ज्ञान की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। जिस प्रकार रोग का ज्ञान होने पर उसका निदान सम्भव होता है तथा औषधि का ज्ञान होने पर उसका निराकरण सम्भव होता है, उसी प्रकार कर्म का सम्यक् परिज्ञान होने पर तथा कर्ममोक्ष का परिज्ञान होने पर ही कर्मों से छुटकारा सम्भव है। जो व्यक्ति जीवों के कर्म-बन्ध, मोक्ष उसकी फल परम्परा को जानता है, वही कर्मों का नाश करता है । "
SR No.022522
Book TitleJain Dharm Darshan Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2015
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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